Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 81 // // 82 // // 83 // = // 84 // = - // 85 // = // 86 // सूरससिणो वि न समा जेसिं जं ते कुणंति अत्थमणं / नक्खत्तगया मेसं मीणं मयरं वि भुंजते / जेसिं पसाएण मए मएण परिवज्जियं पयं परमं / निम्मलपत्तं पत्तं सुहसत्तसमुन्नइनिमित्तं तेसिं नमो पायाणं पायाणं जेहिं रक्खिया अह्मे / सिरिसूरिदेवभद्दाणं सायरं दिनभद्दाणं सूरिपदं दिन्नमसोगचंदसूरीहिं चत्तभूरीहिं / तेसि पयं मह पहुणो दिनं जिणवल्लहस्स पुणो अत्थगिरिमुवगएसिं जिणजुगपवरागमेसु कालवसा / सूरमिव दिट्ठिहरेण विलसियं मोहसंतमया संसारचारगाओ निव्वण्णेहिं पि भव्वजीवेहिं / इच्छंतेहिमवि मुक्खं दीसइ मुक्खारिहो न पहो फुरियं नक्खत्तेहिं महागहेहिं तओ समुल्लसियं / . वुड्डीरयणियरेण वि पाविआ “पत्तवसरेण पासत्थकोसिअकुलं पयडीहोऊण हंतुमारद्धं / काएकाए य विघाए भाविभयं जं ण तं गणइ जग्गंति जणा थोवा सपरेहिं निव्वुई समिच्छत्ता / परमत्थरक्खणत्थं सदं सहस्सै मेलंता नाणासत्थाणि धरंति ते उ जेहिं वियारिऊण परं / मुसणत्थमागयं परिहरंति निज्जीवमिह काउं अविणासियजीवं ते धरति धम्मं सुवंसनिप्फण्णं / सुक्खस्स कारणं भयनिवारणं पत्तनिव्वाणं धरियकिवाणा केई सपरे रक्खंति सुगुरुफरसुजुआ / पासत्थचोरविसरों वियारभीओ न ते मुसई 291 // 87 // // 88 // = // 89 // // 90 // // 91 // // 92 //
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