Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 284
________________ // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // को असुयाणं दोसो जं सुयसहियाणं चेयणा नट्ठा / धिद्धी कम्माण जओ जिणो वि लद्धो अलद्ध त्ति इयराणं विउवंहासं तमजुत्तं भायकुलपसूयाण / एस पुण को वि अग्गि जं हासं सुद्धधम्मम्मि / दोसो जिणिदवयणे संतोसो जाण मिच्छपावम्मि / ताणं पि सुद्धहियया परमहियं दाउमिच्छंति अहवा सरलसहावा सुयणा सव्वत्थ हुंति अवियप्पा / छड्डंतविसभराण वि कुणंति करुणं दुजीहाणं गिहवावारविमुक्के बहुमुणिलोए वि नत्थि सम्मत्तं / आलंबणनिलयाणं सड्ढाणं भाय किं भणिमो न सयं न परं को वा जइ जीव उस्सुत्तभासणं विहियं / ता बुड्डसि निझंतं निरत्थयं तवफडाडोवं / जह जह जिणिंदवयणं सम्मं परिणमइ सुद्धहिययाणं / तह तह लोयपवाहे धर्म पडिहाइ नटचरियं जाण जिणिदो निवसइ सम्मं हिययम्मि सुद्धनाणेण / ताण तिणं च विरायइ समिच्छधम्मो जणो सयलो लोयपवाहसमीरण-उदंडपयंडचंडलहरिए / .. दढसम्मत्तमहाबल-रहिया गुरुया विहल्लंति जिणमयलवहिलाए जं दुक्खं पाउणंति अन्नाणी। नाणीण तं सरित्ता भयेण हिययं थरत्थरइ रे जीव ? अन्नाणीणं मिच्छदिट्ठीण नियसि किं दोसे। अप्पा वि किं न याणसि नज्जइ कटेण सम्मत्तं मिच्छत्तमायरंत वि जे इह वंछंति सुद्धजिणधम्मं / ' ते घत्था वि जरेणं भुत्तुं इच्छंति खीराई // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // // 70 // // 71 // 25

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