Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 286
________________ // 88 // मिच्छत्तसेवगाणं विग्घसयाई पि बिति नो पावा / विग्घलवम्मि पडिए दढधम्माणं पणच्वंति // 84 // सम्मत्तं संजुयाणं विग्घं पि हु होइ उच्छवसरिच्छं / परमुच्छवं पि मिच्छत्त-संजुयं अइमहाविग्धं // 85 // इंदो वि ताण पणमई हीलंतो निययरिद्धिवित्थारं / मरणंते वि हु पत्ते सम्मत्तं जे न बुड्डंति // 86 // छड्डंति निययजीअं तणं व मुक्खत्थिणो न उण सम्मं / लब्भइ पुणो वि जीयं सम्मत्तं हारियं कत्तो // 87 // गयविहवा वि सविहवा सहिया सम्मत्तरयणराएण / सम्मत्तरयणरहिया संते वि धणे दरिद्द त्ति जिणपूयणपत्थावे ज़इ कुविसड्डाण देइ धणकोडि। मुत्तूण तं असारं सारं विरयंति जिणपूयं. // 89 // तित्थयराणं पूया सम्मत्तं गुणाण कारणं भणिया। सा वि य मिच्छत्तयरी जिणसमए देसिय अपूया . // 90 // जिणआणाए धम्मो आणारहियाण फुडमहम्म त्ति / इय मुणिऊण य तत्तं जिणआणाए कुणह धम्म // 91 // जं जं जिणआणाए तं चिय मन्नइ न मन्नए सेसं / जाणइ लोयपवाहे न हु तत्तं सो य तत्तविऊ // 92 // साहीणे गुरुजोगे जे न हु निसुणंति सुद्धधम्मत्थं / ते धिट्ठदुट्ठचित्ता अह सुहडा भवभयविहुणा // 93 // सुद्धकुलधम्मजाया वि गुणिणो न रमंति लिति जिणदिक्खं / तत्तो वि परमतत्तं तओ वि उवयारओ मुक्खं // 94 // वन्नेमि नारयाओ जेसिं दुक्खाई संभरंताणं / भव्वाण जणइ हरिहर-रिद्धि समिद्धी वि उग्घोसं // 95 // 270

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