Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 108 // // 109 // // 110 // // 111 // // 112 // // 113 // वयणे वि सुगुरुजिण-वल्लहस्स केसिं न उल्हसइ सम्म / अह कह दिणमणितेयं उल्लयाण वि हरइ अंधत्तं तिहुयणजणं मरंतं दठूण नियंति जे न अप्पाणं / विरमंति न पावाओ धिट्ठी धिट्ठत्तणं ताणं सोहेण कंदिऊणं कुट्टेऊणं सिरं च उरउयरं / अप्पं खिवंति नरए धिट्ठी तं पि य कुनेहत्तं एगं पि य मरणदुहं अन्नं अप्पा वि खिप्पए नरए। एगं च मालपडणं अन्नं लउडेण सिरघाओ संपइ दूसमकाले धम्मत्थी सुगुरू सावगा दुलहा / नामगुरू नामसड्ढा सरागदोसा बहू अस्थि कहियं पि सुद्धधम्मं काहिं वि धन्नाण जणइ आणंदं / - मिच्छत्तमोहियाणं होइ रईमिच्छधम्मसु एक्कं पि महादुक्खं जिणसमयविऊणं सुद्धहिययाणं / जं मूढा पावाइं धम्मं भणिऊण सेवंति थोवा महाणुभावा जो जिणवयणे रमंति संविग्गा / तत्तो भवभयभाया सम्मं सत्तीए पालंति . सव्वंग पि हु सगडं जह न चलइ इक्कबडिहिलारहियं / तह धम्मफडाडोवं न चलइ सम्मत्तपरिहीणं न मुणंति धम्मतत्तं सत्थं परमत्थगुणहियं अहियं / बालाण ताण ऊवरिं कह रोसो मुणियधम्माणं अप्पा वि जाण वेरी तेसिं कहं होइ परजिए करुणा / चोराण बंदियाण य दिटुंतेणं मुणेयव्वं जे रज्जधणाईणं कारणभूया हवंति वावारा / . ते वि हु अइपावजुया धन्ना छड्डंति भवभिया 209 // 114 // // 115 // // 116 // // 117 // // 118 // // 119 //
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