Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
________________ // 132 // // 133 // // 134 // // 135 // // 136 // // 137 // लोए वि इमं सुणियं जो आराहिज्ज तं न कोविज्जा। मन्नेज्ज तस्स वयणं जइ इच्छसि इच्छियं काउं. दूसमदंडे लोए सुदुक्खसिद्धम्मि दुक्खउदयम्मि / धन्नाण जाण न चलइ सम्मत्तं ताण पणमामि नियमइ अणुसारेणं ववहारनएणं समयनीईए / कालक्खित्तणुमाणेण परिक्खिओ जाणिओ सुगुरू तह वि हु नियजड़याए कम्मगुरूत्तस्स नेव वीससिमो। धन्नाण कयत्थाणं सुद्धगुरू मिलइ पुनेहिं अहयं पुणो अहन्नो ता जइपत्तो य अह न पत्तो य। तह वि मह हुज्ज सरणं संपइ जो जुगपहाण गुरू जिणधम्म दुन्नेय अइसयनाणीहिं नज्जए सम्म / तह वि हु समयट्ठिईए ववहारनएण नायव्वं जम्हा जिणेहि भणियं सुयववहारं वि सोहियं तस्स / जायइ विसुद्धबोही जिणआणासहगत्ताओ जे जे दीसंति गुरू समयपरिक्खाइ ते न पुज्जं त्ति / पुणमेगं सद्दहणं दुप्पसहो जाव जं चरणं ता एगो जुगपवरो मज्जत्थमणेहि समयदिट्ठीए / सम्मं परिक्खियव्वो मुत्तूण पवाहहलबोलं . संपइ दसमच्छेरयनामायरिएहिं जणियजणमोहा / सुहधम्माओ निउणा वि चलंति बहुजणपवाहाओ जाणिज्ज मिच्छदिट्ठी जे पडियालंबणाई गिण्हंति / जे पुण सम्मट्टिी तेसि मणो चडणपयडीए सव्वं पि जए सुलहं सुवनरयणाइवत्थुवित्थारं / निच्वं चिय मेलावं सुमग्गविरयाण अइदुलहं 281 // 138 // // 139 // // 140 // // 141 // // 142 // // 143 //
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