Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // जो सेवइ सुद्धगुरू असुद्धलोयाण सो महासत्तू / तम्हा ताण सया से बलरहिओ मा वसिज्जासु समयविऊ असमत्था सुसमत्था जत्थ जिणमए अविऊ। तत्थ न वड्डइ धम्मो पराभवं लहइ गुणरागी जं न करइ अइभावं उम्मग्गसेवी समत्थओ धम्मे। ता लटुं अह कुज्जा ता पीडइ सुद्धधम्मत्थी / जइ सव्वसावयाणं एगच्च जंतुमिच्छवायम्मि। धम्मट्ठियाण सुंदर ता कहणु पराभवं कुज्जा तं जयइ पुरिसरयणं सुगुणटुं हेमगिरिवरमहरघं / जस्सासयम्मि सेवइ सुविहिरओ सुद्धजिणधम्म सुरतरुचिंतामणिणो अग्धं न लहंति तस्स पुरिसस्स / जो सुविहिरयजणाणं धम्माधारं सया दें। लज्जंति जाणिमोहं सप्पुरिसा निययनामगहणेण / पुण तेसिं कित्तणाओ अम्हाण गलंति कम्माई .. आणारहियं कोहाइसंजुयं अप्पसंसणत्थं च / धम्म सेवंताणं न य कित्ती नेव धम्मो य इयरजणसंसणाए हिट्ठा उस्सुत्तभासिए न भयं / ही ही ताण नराणं दुहाई जइ मुणइ जिणनाहो उस्सुत्तभासगाणं बोहीनासो अणंतसंसारो / पाणच्चए वि धीरा उस्सुत्तं ता न भासंति मुद्धाण रंजणत्थं अविहिपसंसं कयाइ न करिज्जा। . किं कुलवहुणो कत्थइ थुणंति वेसाण चरियाई जिणआणाभंगभयं भवसयभीयाण होइ जीवाणं। . भवसयअभीरुयाणं जिणआणाभंजणं कीला 204 // 54 // // 55 // // 56 // // 57 // . // 58 // // 59 //
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