Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 06
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // // 16 // // 17 // जिणवरआणारहियं वद्धारंता वि के वि जिणदव्वं / बुड्डंति भवसमुद्दे मूढा मोहेण अन्नाणी कुग्गहगहगहियाणं मुद्धो जो देइ धम्मउवएसं / सो चम्मासी कुक्कुर-वयणम्मि खिवेइ कप्पूरं रोसो वि खमाकोसो सुत्तं भासंतयस्स धन्नस्स / उस्सुत्तेण खमाविय दोसमहामोहआवासो इक्को वि न संदेहो जं जिणधम्मेण अस्थि मुक्खसुहं / तं पुण दुविनेयं अइउक्कडपुनरहियाणं सव्वं पि वियाणिज्जइ लब्भइ तह चउरिमा य जणमझे। इक्कं पि भाविदुलहं जिणमयविहिरयणसुवियाणं. मिच्छत्तबहुलयाए विंसुद्धसम्मत्तकहणमवि दुलहं / जह वरनरवरचरियं पावनरिंदस्स उदयम्मि बहुगुणविज्झानिलओ उस्सुत्तभासी तहा वि मुत्तव्यो। जह वरमणिजुत्तो वि हु विग्घकरो विसहरो लोए सयणाणं वा मोहे लोया धिप्पंति अत्थलोहेण / नो घिप्पंति सुधम्मे रम्मे हा मोहमाहप्पं गिहिवावारपरिस्सम-खिन्नाण नराण वीसमणठाणं / एगाण होइ रमणी अन्नेसि जिणिंदवरधम्मो. तुल्ले वि उयरभरणे मूढअमूढाण पिच्छसु विवांगं / एगाण नरयदुक्खं अन्नेसिं सासयं सुक्खं जिणमयकहापबंधो संवेगकरो जियाण सव्वो वि। संवेगो सम्मत्ते सम्मत्तं सुद्धदेसणया ता जिणआणपरेणं धम्मो सोयव्व सुगुरुपासम्मि / अह उचियं सड्ढाउ तस्सुवएसस्स कहगाओ 201 // 18 // // 19 // // 20 // // 21 // // 22 // // 23 // 8. 4
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