Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 02
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ प्रस्तावना॥ :.35 : मनुष्य का कर्तव्य खान पान नहीं है मगर उत्क्रान्ति है उत्क्रान्ति दो प्रकार की होती हैः-दैहिक व आत्मिक, जिन में से पात्मिक उत्क्रान्ति श्रेष्ट है, ताहम भी हमें दैहिक को नहीं भूल जाना चाहिये. इन दोनों उत्क्रान्ति का आधार धर्म ही पर है, क्योंकि धर्म रूप धुरि के बिना दैहिक व आत्मिक उत्क्रान्ति रूप गाडी नहीं चल सक्ती. विना धर्म के भी संसार सुखमय द्रष्टिगोचर होता तो है मगर वो मृगतृष्णावत् है। वास्तव में जैसे मृगजल, जल नहीं है वैसे ही विना धर्म के दृष्टिगोचर होता हुवा सुखी संसार दर हकीकत में सुखी नहीं है. परन्तु अंतर पटमें दुखरूप ज्वाला विद्यमान है. कहने का तात्पर्य यह है कि जहां शुद्ध धर्म है वहां ही सुखी संसार व आत्मो क्रान्ति दोनों मोजूद है के जो मात्र जीवन का खास कर्तव्य है, परन्तु जहां तक धर्म का सच्चा रहस्य नहीं जानने में आवे वहांतक हृदयशून्य धर्म व बाहरी धामिक क्रिया से कुछ लाभ प्राप्त नहीं हो सकता, अतएव धर्मका सच्चा संस्कार डालना होवे तो उसके वास्ते अनुकूल समय वाल्यावस्था ही है. इन दोनों कारणों से याने गुद्ध धर्मके संस्कार डालने व वह भी बचपन में ही डालने आशय से, आसानी से समझ सके ऐसी शैली में केतनेक वर्षांके अनुभव के पश्चात् मांगरोल जनशाला के अध्यापक वर्तमान में" कॉन्फरन्स प्रकाश" नामके

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 85