Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( २७ ) सुहपासो अ सुपासो, गम्भे माऊइ तणुसुपासत्ता ७। सिअलेसो चंदपहो, ससिपहझयपाणडोहलओ ८॥१११॥
शुभपार्श्वश्वसुपार्थो-गर्भे मातुस्तनोः सुपार्श्वत्वात् । ७ ।
सितलेश्यश्चन्द्रप्रभः, शशिप्रभाध्वजपानदोहदतः ८ ॥ १११ सुहकिरिआए सुविहो, सयं पि जणणी वि गब्भकालम्मि।९। जयतावहरो सियलो, अंबाकरफाससमिअपिउदाहो १०॥११२॥ शुभक्रियया सुविधिः, स्वयमपि जनन्यपि गर्भकाले ९ । जगत्तापहरःशीतलो-ऽम्बाकरस्पर्शशमितपितृदाहः १० १११२ ।
सेयकरो सिज्जंसो, जणणीए देविसिजअक्कमणा । ११।
सुरहरिवनहिं पुजो, पिउसमनामेण वसुपुजो १२ ॥१३॥ श्रेयस्करः श्रेयांसो-जनन्या देवोशय्याऽऽक्रमणात् ११ । सुरहरिवसुभिःपूज्यः, पितृसमनाम्ना वासुपूज्यः १२ ॥ ११३ ॥ विमलो दुहा गयमलो, गब्मे मायावि विमलबुद्धितणू। १३॥ नाणाइअणंतत्ता-गंतो शंतमणिदामसुमिणाओ।१४। ॥११४॥
विमलोद्विधा गतमलो-गर्भमाताऽपिविमलबुद्धितनुः १३ । ज्ञानाद्यनन्तत्त्वा-दनन्तोऽनन्तमणिदामस्वप्नतः १४ ॥ ११४ ॥
धम्मसहावा धम्मो, गन्भे मायावि धम्मिआ अहिअं। १५ । संतिकरणाउ संती, देसे असिवोवसमकरणा । १६ । ११५॥
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