Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७६ ) सेअंसे सिरिकेऊ, तिविट्टमरुभूइ अमियतेअधणा ॥ वसुपुजे नंदण नं-द संख सिद्धत्थ सिरिवम्मा ॥ ३३५ ।। सुवए रावणनारय-नामा नेमिमि कण्हपमुहा य । पासे अंबड सच्चइ, आणंदा वीरिसेणियाईया ॥ ३३६ ॥ ऋषभे मरीचिप्रमुखाः, श्रीवर्मनृपादयः सुपार्श्वजिने ॥ हरिषेणविश्वभूती, शीतलतीर्थे जिनजीवौ ॥ ३३४ ।। श्रेयांसे श्रीकेतु-स्त्रिपृष्ठमरुभूत्यमिततेजोधनाः ॥ वासुपूज्ये नन्दन नन्द-शङ्खसिद्धार्थश्रीवर्माणः ॥ ३३५ ।। सुव्रते रावणनारद-नामानौ नेमौ कृष्णप्रमुखाश्च ।। पार्श्वेऽम्बडसत्यक्या-नन्दा वीरे श्रेणिकादयः ॥ ३३६ ।। सेणिय १ सुपास २ पोट्टिल ३-उदाइ ४ संखे ५ दढाउ ६सयगे य। ७ रेवइ ८ सुलसा ९ वीर-स्स २४ बद्धतित्थत्तणा नवओ।३३७/ श्रेणिकसुपार्श्वपोटिलो-दायिशङ्खा दृढायुःशतकौ च ॥ रेवती सुलसा वीर-स्य बद्धतीर्थकृत्त्वा नव ॥ ३३७ ।। भीमावलि १ जियसत्तू २, रुद्दो ९ विस्सानलो १० य सुपइट्ठो ११॥ अयलो १२ अ पुंडरिओ १३, अजिअधरो १४ अजिअनाभो य १५ ॥ ३३८ ॥ पेढालो १६ तह सच्चइ २४, एए रुद्दा इगारसंगधंरा ।। उसहाजिअसुविहाई, अडजिण सिरिवीरतित्थभवा ॥ ३३९ ॥ भीमावलिजितशत्रू, रुद्रो विश्वानलश्च सुप्रतिष्ठः ॥ अचलश्च पुण्डरीको-जितधरोऽजितनाभश्च ॥ ३३८ ॥ . For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364