Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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( ७७ )
पेढालस्तथा सत्यकि-रेते रुद्रा एकादशाऽङ्गधराः ||
ऋषभाऽजित सुविध्या - द्यष्टजिन श्रीवीरतीर्थभवाः ॥ ३३९ ॥ जहणं सहवं संखं, वेअंतियनाहिआण बुद्धाणं । वईसेसियाण वि मयं, इमाई सग दरिसणाई कमा ॥ ३४० ॥ तिनि उसहस्स तित्थे, जायाई सीअलस्स ते दुन्नि || दरिस मेगं पास-स्स सत्तमं वीरतित्थंमि ॥ ३४१ ॥ जैनं शैवं साधं, वेदान्तिकनास्तिकानां बौद्धानाम् || वैशेषिकाणामपिमत-मिमानि सप्त दर्शनानि क्रमात् ॥ ३४० ॥ त्रीणि ऋषभस्य तीर्थे, जातानि शीतलस्य ते चोभे ॥ दर्शनमेकं पार्श्व-स्य सप्तमं वीरतीर्थे च अड्डत्तरसय सिद्धि, पूया अस्संजयाण हरिवंसो || थीरूवोत्थियरो, कण्हावरकंकगमणं च ॥ ३४२ ॥ गन्भवहारुवसग्गा, चमरुप्पाओ अभाविआ परिसा || सरिसुरविमाणागम, अणंतकालिअ दसच्छेरा ॥ ३४३ ॥
॥ ३४१ ॥
॥ ३४२ ॥
अष्टोत्तरशतसिद्धिः, पूजाऽसंयतीनां हरिवंशः ॥ स्त्रीरूपस्तीर्थकरः, कृष्णाऽपरकङ्कागमनं च गर्भापहारोपसर्गा-श्वमरोत्पातोऽभाविता परिषद् ॥ शशिसूर्यविमानागमन - मनंतकाले दशाऽऽश्चर्याणि ॥ ३४३ ॥ सिरिरिसह सुविहिसीयल, मल्लीनेमीण कालि तित्थे वा ।। अभविंसु पणच्छेरा, कमेण वीरस्स पंच ने ॥ ३४४ ॥ श्री ऋषभस विधिशीतल - मल्लीने मीनां काले तीर्थे वा ॥ अभूवन् पञ्चाश्चर्याणि, क्रमेण वीरस्य पञ्चान्यानि ॥ ३४४ ॥
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