Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 330
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धणिट्ट ११ त्तराभद्दा १२ ॥ ३११ ॥ रेवइ १३ रेवइ १४ पुस्सो १५, भरणी १६ कत्तिय १७ सरेवई १८ भरणी १९ । सवण २० स्सिणि २१ चित्त २२ विसा-ह २३ साइ २४ जिणमुक्ख नक्खत्ता ।। ३१२ ॥ अभिजिन्मृगशीर्षाद्री, पुष्यपुनर्वसू च चित्राऽनुराधा ।। ज्येष्ठामूलं पूर्वा-पाढाधनिष्ठोत्तराभाद्रपदाः रेवती रेवती पुष्यः, भरणी कृत्तिका रेवती च भरणी ।। श्रवणोऽश्विनीचित्राविशाखा, स्वातिर्जिनमोक्षनक्षत्राणि ॥३१२॥ मयरो १ वसहो २ मिहुणो, ३ दुसु ककड ४ -५ कण्ह ६ दुसु अलीअ ७-८ धणू ॥१० धणु कुंभो११ तिसुमीणो, १२ -१३-१४ ककड १५ मेसो १६ वसह १७ मीणो १८ ॥ ३१३ ॥ मेसो १९ मयरो २० मेसो २१, तिसु तुल २२२३-२४ एएउ मुक्खरासीओ ॥ कयजोगनिरोहाणं, मुक्खहाणा जिणाण इमे ।। ३१४ ।। मकरो १ वृषभो २ मिथुनो, ३ द्वयोः कर्कटः ४-५ कन्या ६ द्वयोरलि ७-८ घनुः ९॥ धनुः १० कुम्भ ११ त्रिषु मीनः, १२-१३-१४ कर्कट १५ मेषौ १६ वृषभ १७ मीनौ १८ ॥ ३१३ । मेषो १९ मकरो २० मेष-२१ स्त्रिषु तुलै-२१-२३-२४ ते तु मोक्षराशयः ॥ कृतयोगनिरोधानां, मोक्षस्थानानि जिनानामिमानि ॥ ३१४ ॥ For Private And Personal Use Only

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