Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

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Page 331
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ७२ ) अट्ठावयंमि उसो, वीरो पावाइ रेवए नेमी ॥ चंपाड़ वासुपुज्जो, संमेए सेसजिण सिद्धा ॥ ३१५ ॥ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टापदे ऋषभो - वीरोऽपापायां रैवते नेमिः ॥ चम्पायां वासुपूज्यः, सम्मेते शेषजिनाः सिद्धाः || ३१५ ।। वीरोसहने मीणं, पलिअंक सेसयाण उस्सग्गो ॥ पलिअंकासणमाणं, सदेहमाणा तिभागूणं ॥ ३१६ ॥ वीरर्षभनेमीनां पर्यङ्कं शेषकाणामुत्सर्गः ॥ पर्यङ्कासनमानं, स्वदेहमानात् त्रिभागोनम् ॥ ३१६ ॥ सधेसि सिवोगाहण, विभागऊणा निआसणपमाणा ॥ पुरिमंतिमाण चउदस, छट्ठा सेसाणमासतवो ॥ ३१७ ॥ सर्वेषां शिवाऽवगाहना, त्रिभागोना निजासनप्रमाणात ॥ प्रथमान्तिमयोश्चतुर्दश, षष्ठं शेषाणां मासतपः ॥ ३१७ ॥ उसहरूस दससहस्सा, विमलस्स य छच्च सत्तणंतस्य ॥ संतिस्स नवसयाई, मल्लिसुपासाण पंचसया ।। ३१८ ।। पउमस्स तिसय अडहिय, नेमिजिणिंदस्स पणसयछतीसा । धम्मस्स अडहियसयं, छसयाई वासुपुजस्स ॥ ३१९ ॥ पासस्स तितीसमुणी, वीरस्स य नत्थि सहस सेसाणं ॥ अडतीस सहस चउसय, पणसीई सङ्घपरिवारे ।। ३२० ।। ऋषभस्य दशसहस्रा-विमलस्य षट्च सप्ताऽनन्तस्य ॥ शान्तेर्नवशतानि, मल्लिसुपार्श्वयोः पञ्चशतानि ॥ ३१८ ॥ For Private And Personal Use Only

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