Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir

View full book text
Previous | Next

Page 320
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६१ ) शतिः ॥ २६५ ॥ चतुर्विंशतिर्विंशतिः षोडश, चतुर्दशद्वादश दशाऽष्ट षट्चत्वारः । सर्वाङ्के तु लक्षं, षडविंशतिसहस्राणि च द्वे शते ॥ २६६ ॥ गणहर के वलिमणओ-हिपुविवेउविवाइणं संखं । मुनिसंखाए सोहिअ, नेआ सामन्नमुणिसंखा गणधर केवलिमनोऽवधि - पूर्विवैक्रियवादिनां संख्या । मुनिसंख्यातः शोधिता ज्ञेया सामान्यमुनिसङ्ख्या ॥२६७॥ एगूणवीस लक्खा, तह छासीई हवंति सहसाई । इगवन्ना अहियाई, सामन्नमुणीण सवग्गं ॥ २६८ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ २६७ ॥ एकोनविंशतिलक्षा-स्तथा षडशीतिर्भवन्ति सहस्राणि । एकपञ्चाशदधिकानि, सामान्यमुनीनां सर्वाङ्कम् ॥ २६८ ॥ बावीससहसनवसय, उसहस्स अणुत्तरोववाइमुणी । मिस्स सोलपास - स्स बार वीरस्स अट्ठसया ॥ २६९ ॥ द्वाविंशतिसहस्राणि नवशतानि, ऋषभस्याऽनुत्तरोपपातिमुनयः । नेमे : पोडश पार्श्वस्य, द्वादश वीरस्याऽष्टशतानि ॥ २६९ ॥ ते सेसाणमनाया, सवेसि पन्नगाससीसकया ॥ निअनअसीसपमाणा, नेया पत्तेयबुद्धा वि ॥ २७० ॥ ते शेषाणामज्ञाताः - सर्वेषां प्रकीर्णाः स्वशिष्यकृताः ॥ निजनिजशिष्यप्रमाणा - ज्ञेयाः प्रत्येकबुद्धा अपि , ד, ।। २७८ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364