Book Title: Saptatishat Sthana Prakaranam Part 1
Author(s): Ruddhisagar
Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir
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तह वेजयंतिनामा, जयंति अपराजिया य देवकुरू । बारवई अ विसाला, चंदपहा नरसहसवुज्झा ॥१५२ ॥ शिबिका सुदर्शना सु-प्रभा च सिद्धार्थाऽर्थसिद्धा च । अभयङ्करा च निवृत्तिकरी, मनोहरा मनोर मिका च ।। १५०॥ सूरप्रभा, शुक्रप्रभा, विमलप्रभा पृथ्वी देवदिन्ना च । सागरदत्ता तथा ना-गदत्ता सर्वार्था विजया च ।। १५१ ॥ तथा वैजयन्ती नामा, जयन्त्यपराजिता च देवकुरुः। द्वारवती च विशाला, चन्द्रप्रभा नरसहस्रोह्याः ॥ १५२ ॥ वसुपुजो छसयजुओ, मल्ली पासो अ नरतिसयसहिया । चउसहसजुओ उसहो; इगु वीरो सेस सहसजुया ॥१५३॥ वासुपूज्यः षट्शतयुतो-मल्लिःपार्श्वश्चनरत्रिशतसहितः चतुःसहस्रयुत ऋषभ-एकोवीरःशेषाःसहस्रयुताः ॥ १५३ ॥ नेमी बारवईए; सेसा जम्मणपुरीसु पवइआ । सिद्धत्थवणे उसहो, विहारगेहमि वसुपुजो ॥१५४ ॥ तह वप्पगाइ धम्मो, नीलगुहाए अ सुव्वयजिणिंदो । पासो अ आसमपए, वीरजिणो नायसंडंमि ॥७५५ ॥ सेसा सहसंबवणे, निक्खंता सोगतरुतले सवे ।। कयपंचमुट्ठिलोआ, उसहो चउमुट्टिकयलोओ ॥१५६ ॥ नेमिरवत्यां, शेषा जन्मपुरीषु प्रव्रजिताः ।। सिद्धार्थ वने ऋषभो-विहारगेहे वासुपूज्यः ॥१५४ ॥
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