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शिशुनाग वंश। भी पता चलता है कि वह अवश्य ही भगवान महावीरजीके परमभक्त और श्रद्धालु थे; किंतु उनके इस कथनमें तथ्य नहीं दिखता कि वह बौद्ध भिक्षु होगये थे। हां, जैन ग्रंथोंसे यह प्रकट है कि मपने प्रारंभिक जीवनमें अभयकुमार अवश्य चौद्ध रहे थे । अमयकुमार आजन्म ब्रह्मचारी रहे थे । वह युवावस्थामें ही उदासीन वृत्तिके थे । उनने इस वातकी कोशिश भी की थी कि वह जल्दी जैन मुनि होना; किन्तु वह सहसा पितृ आज्ञाका उल्लंघन नहीं कर सके थे। गृहस्थ दशामें उनने श्रावकोंके व्रतोंका अभ्यास किया था और फिर अपने माता-पिताको समझा बुझाकर वह जैन मुनि होगये थे। अपने पिता के साथ वह कईवार भगवान महावीरजीके दर्शन कर चुके थे और उनके निकटसे अपने पूर्वभव सुनकर उन्हें जैनधर्ममें श्रद्धा हुई थी। अभयकुमार अपनी बुद्धिमत्ता और चारित्र निष्ठाके लिये रानगृहमें प्रख्यात थे।
श्वेतांबरीय शास्त्रोंका कथन है कि गृहस्थ दशामें अभयकुमारने अपने मित्र एक यवन राजकुमारको, जिसका नाम भद्रिक था, जैनधर्मका श्रद्धानी बनाया था। इस माकने एक भारतीय
१५-महिम० म० मा० १ पृ० ३९२ । २-भमबु०, पृ० १९११९४ । ३७-अच०, पृ. १३७१ ४-हिजेवा०, पृ० ११ व ९१ वेक · सूत्रतांगमें इनको लक्ष्य करके एक व्याख्यान लिखा गया है। (S.B. 'E., XLV., 400). यह यवन बताये गये है, जिससे भाव यूनानी : अथवा ईरानी (Persian) के होते हैं। हमारे विचारसे इसका ईरानी
होना ठीक है, क्योंकि उस समय ईशन (फारसं ) का ही धनिष्ठ सम्पर्क भारतसे था और जैन मंत्री राक्षसके सहायकोंमें भी फारसका नाम है, मुरा • ५६।