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मौर्य-साम्राज्य। रिश्तेदारों से मिलती, उसपर उसका पूरा अधिकार होता था। वह जैसे चाहे वैसे उसको खर्च कर सक्ती थी। स्त्री-धनकी रक्षा के लिये कड़े नियम राज्यकी ओरसे बने हुये थे ।* किन्तु यदि पतिकी मृत्युके उपरान्त स्त्री दूसरा विवाह करती थी, तो उसका सारा स्त्रीधन जप्त होजाता था। हां, श्वसुरकी सम्मतिसे दूसरा विवाह करनेपर वह उस धनको पासक्ती थी। पर इतना स्पष्ट है कि पुनर्विवाह हेय दृष्टि से ही देखा जाता था। पुनर्विवाह करने के लिये अतीव कठिन नियम बना दिये गये थे जिनमें स्त्रियोंके इस मधिकारको यथासंभव परिमित करने का प्रयास था। पुरुषों में बहु विवाह करनेका रिवान था; किन्तु इसके लिये भी समुचित राजनियम बने हुए थे।
एक पत्नीसे यदि संतान न हो, तो दुसरा विवाह करनेकी साधारण माज्ञा थी । और दूसरी पत्नीसे भी पुत्रोत्पन्न न हो, तो पुरुष तीसरा और फिर चौथा इत्यादि सामर्थ्यके अनुसार विवाह कर सक्ता था; किन्तु दूसरा विवाह करनेके पहले उसे प्रथम पत्नीके भरण-पोषणका पूरा प्रबन्ध कर देना अनिवार्य था। इस नियमके होने के कारण बहुत कम ऐसे पुरुष होते थे जो बहुपत्नीक हों। किन्हीं विशेष अवस्थाओंमें विवाह विच्छेद करनेकी भी रानाज्ञा थी। किंतु उस समय एक पतिव्रत और एक पत्नीव्रतकी प्रधानता थी।'
-जन कानुनमें इस वातका खास ध्यान रक्खा गया है । उसीके अनुसार चन्द्रगुप्त जैसे जैन सम्राट्का गज्य नियम होना उपयुक्त है। १-सरस्वती, भा० २८ खण्ड २ पृ० १३६७ ।
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