Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 301
________________ मौर्य साम्राज्य। [२७५ ही अशोकके बौद्धत्वको वास्तविक मानकर विद्वानोंने स्वीकार किया है, वरन् ऐसा कोई स्पष्ट कारण नहीं है कि उन्हें बौद्ध माना जावे । यह मत नया भी नहीं है । डा. फ्लीट, मि. मेकफैल, मि० मोनहन और मि० हेरसने अशोकको बौद्ध धर्मानुयायी प्रगट नहीं किया था । डॉ. कर्न' और डॉ० सेनार्ट व हल्श सा. भी अशोकके शासन लेखोंमें कोई वात खास बौद्धत्वकी परिचायक नहीं देखते हैं, किंतु वह बौद्धोंके सिंहकीय ग्रंथोंके आधारपर अशोकको बौद्ध हुआ मानते हैं । और उनकी यह मान्यता विशेष महत्वशाली नहीं है क्योंकि बौद्धोंके सिंहलीय अथवा ४ थी से ६ ठी श० तक मन्य ग्रन्थ काल्पनिक और अविश्वसनीय प्रमाणित हुये हैं। तथापि रूपनाथके प्रथम लघु शिलालेखके आधारसे जो अशोकको बौद्ध उपासक हुमा माना जाता है, वह भी ठीक नहीं है क्योंकि बौद्ध उपासकके लिये श्रावक शब्द व्यवहृत नहीं होसक्ता है जैसे कि इस लेख में व्यवहृत हुआ है। बौद्धोंके निकट श्रावक शब्द विहारों में रहनेवाले भिक्षुओंका परिचायक है" और उपरोक्त लेख एवं अन्य लेखोंसे प्रकट है कि अशोक उससमय एक उपासक थे।११ १-जराएलो, १९०८, पृ० ४९१-४९२ । २-मैअशो० पृ० ४८ । ३-अर्ली हिस्ट्री आफ वंगाल पृ० २१४ । ४-जमीसो० भा० १७ पृ० २७२-२७६ । ५-मै७० पृ० ११२ । ६-इंऐ० भा० २० पृ० २६० । ७-C. J. J. I. p. XIIx जमीसो० भा० १७ पृ. २७१। ८-अशो० पृ० १९ व २३, भाअशो. पृ० ९६ और मैवु• पृ० ११०। ९-अध० पृ० ६९। १०-भमबु० भूमिका पृ. १२ । ११-अघ० पृ० ७२-८०...1 - -

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