Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 305
________________ मौर्य साम्राज्य । | २८३ के स्तृपका पुनरुहार कर चुके थे। किन्तु उनका बौद्धधर्मके प्रति यह मादरभाव कुछ अनोखा नहीं था। वह स्पष्ट कहते हैं कि. मैंने पत्र संप्रदायोंका विविध प्रकारसे सत्कार किया है। आनीविकोंके लिये उनने कई गुफायें वनवाई थीं। इसीप्रकार ब्राह्मण और निर्ग्रन्थों (जनों) का भी उन्हें ध्यान था। ___ 'महावंश' में लिखा है कि अशोकने कई बौद्धविहार बनवाये थे; तो उधर 'राजतरिङ्गणी' से प्रगट है कि उन्होंने काश्मीरमें कई ब्राह्मण मंदिर बनवाये थे। जैनोंकी भी मान्यता है कि अशोकने श्रवणबेलगोल आदि स्थानोंपर कई जैन मंदिर निर्मित कराये थे। अतएव अशोकको किसी सम्प्रदायविशेषका अनु. यायी मान लेना कठिन है । उपरोक्त वर्णनको देखते हुये उनका चौद्ध होना अशक्य है । बौद्धमतको भी वह अन्य मतोंके समान आदरकी दृष्टिसे देखते थे और बौद्धसंघकी पवित्रता और अक्षुण्ण.. ताके इच्छुक थे । विदेशोंमें नो उन्होंने अपने धर्मका प्रचार किया. था उससे भी उनके चौद्धत्वका कुछ भी पता नहीं चलता है। मिश्र, मेकोडोनिया प्रभृति देशोंमें अशोकके धर्मोपदेशक गये थे किन्तु इन देशोंमें बौद्धोंके कुछ भी चिन्ह नहीं मिलते; यद्यपि मिश्र, मध्यएशिया और यूनानमें एक समय दिगम्बर जैन मुनियों के अस्तित्व एवं इन देशोंकी धार्मिक मान्यताओंमें जैनधर्मका प्रभाव १-अघ० पृ. ३८६-निग्लीव स्तम्भ लेख (वुद्ध कनक मुनि नौमतके विरोधी देवदत्तकी संप्रदायमें विशेष मान्य है) २-अध० पृ. ३६०-पष्ठ स्तम्म टेख । ३-अध० पृ. ४०१-तीन गुहा लेख । . '.४-महावंश पृ० २३ । ५-राजतरंगिणी भा० १ पृ. २०। ६-हिवि०. भा० ७ पृ. १५० । ७-जमीयो० मा० १. पृ. २७२ । -

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