Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 313
________________ मौर्य-साम्राज्य । [२९१ इस धन कहांतक सच्चाई है ? उनके ग्रन्थोंसे यह भी पता चलता है कि उनका एक भाई चीतशोक नामक 'तित्थियों' (जैनों) का भक्त था । वह बौद्ध भिक्षुओंको वासनासक्त ऋहकर चिढ़ाया करता था। अशोकाने प्राणमय द्वारा उसे बौद्ध बनाया था। बौद्ध शास्त्रोंमें यह भी लिखा है कि अशोकने एक जैन द्वारा बुद्धमूर्तिकी अविनय किये जाने के कारण हजारों जैनोंको पुण्ड्वईन यादि स्थानोकर मावा दिया था। पाटलिपुत्रमें एक जैन मुनिको बौद्ध होने के लिये उन बाध्य किया था किन्तु बौद्ध होने की अपेक्षा उन मुनि महाराजने प्राणों की बलि चढ़ा देना उचित समझा था। किन्तु चौद्धोंकी इन धाओंमें पत्यताका अंगविण्कुल नहीं प्रतीत होता है। सांचीके बौद्ध पुगतत्वसे प्रगट है कि ई० पू० प्रथम शताब्दिता अविनयके भयसे म० बुद्धकी मूर्ति पाषाणमें अकित भी नहीं की जाती थी। फिर भला यह तो असंभव ही ठहरता है कि अशोक समय म० वुद्धकी मूर्तियां मिलती हों। तिसपर अशोककी शिक्षायें उनको एक महान उदारमना राजा प्रमाणित करती हैं। उनके द्वारा उक्त प्रकार हत्याकांड रचने की संभावना स्वप्नमें भी नहीं की जासक्ती । बौद्धोंकी उक्त कथायें उसी प्रकार असत्य १-अशोक० पृ. २५४ । २-दिव्यावदान ४२७-मैत्रु० पृ० ११४। ३-जैग० भा० १४ पृ० ५९ । ४-जमीसो. भा० १७ पृ० २७२-पाणिनिसूत्रके पातञ्जलि भाष्य (Goldstuckor's Panini. p. 228) में मौर्योको सुवर्ण मूर्तियां बनवाते और वेचते लिखा है। भाष्य में लिखा है कि शिव, स्कन्ध, विशाखकी मूर्तियां नहीं बेची जाती थीं। और बौद्ध मूर्तियां । भी उस समय नहीं थीं। अत: मौधों द्वारा बनाई गई मूर्तियां जैन होना चाहिये । इस तरह पातञ्जलिभाष्यसे भी मौर्योका जैन होना प्रकट है।

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