Book Title: Sankshipta Jain Itihas Part 01 Khand 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 302
________________ २८०] संक्षिप्त जैन इतिहास । . मस्कीके शिलालेखमें उनका उल्लेख 'एक बुद्ध शाक्य के नामसे अवश्य हुआ है; किंतु यह उनके ज्ञानप्राप्तिका द्योतक ही माना गया है। इससे यह प्रकट नहीं होता कि अशोने चौद्धधर्मकी दीक्षा ली थी। हां, यह स्पष्ट है कि वह श्रावक अथवा उपासक हुआ था, जसे कि वह स्वयं कहता है । इससे भाव व्रती श्रावक होनेके हैं। किंतु अगाड़ी अशोक कहता है कि करीब एक वर्षसे कुछ अधिक समय हुआ कि जबसे मैं संघ आया हूं तबसे मैंने अच्छी तरह उद्योग दिया है। बौद्धग्रन्थोंमें भी अशोकके बौद्धसंघमें आनेकी इस घटनामा उल्लेख है। वुल्हर, स्मिथ और टॉमस सा० ने इस परसे अशोकको चौद्धसंघमें सम्मिलित हुआ ही मान लिया था। डॉ० भाण्डारकर अशोकको बौद्ध भिक्षु हुआ नहीं मानते; बल्कि कहते हैं कि संघ मशोक एक 'भिक्षुगतिक' के रूपमें अवश्य रहा था। किंतु मि० हेरस कहते हैं कि वह बौद्धसंघमें सम्मिलित नहीं हुआ था। अशोक बौद्ध संघमें गया अवश्य था, और भिक्षुनीवनकी तपस्याका उसपर प्रभाव भी पड़ा था; किंतु इतनेपर भी उसने बौद्धधर्मही दीक्षा नहीं ली थी। इस घटना के बाद अशोभने दो शासनलेख प्रगट किये थे। एक रूपनाथवाला शिलालेख है जो साधारण जनताको लक्ष्य करके लिखा गया है और दुसरा कलकचा वैराटवाला शिलालेख है, जिप्सको उन्होंने बौद्धसंघको लक्ष्य करके लिखा है। रूपनाथवाला - . १-जमीसो० भा० १७ पृ०.२७३ । २-अध० पृ. ७३-७४.। ३-महावंश (कोलम्बो) पृ० २३ । ४-जमीसो. भा० १७. पृ० २७४ । ५-माअशो० पृ० ७९-८०। ६-जमीसो० भा० १७ पृ० २७२-२७६१

Loading...

Page Navigation
1 ... 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323