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२२८] संक्षिप्त जैन इतिहास । भारतकी सीमासे पाटलिपुत्रता राजमार्ग बना हुआ था। यह मार्ग शायद पुप्चलावती (गान्धारकी राजधानी ) से तक्षशिला होकर इलन, व्यास, सतलज, जमनाचो पार करता हुआ तथा हस्तिनापुर, कन्नौज और प्रयाग होता हुआ पाटलिपुत्र पहुंचता था। सड़कों की देखभाला विमाग अलग था x दुर्भिक्षकी व्यवस्था उच्च न्यायालय करते थे। जो बन्न सरकारी भण्डारोंमें माता या उसका भाषा भाग दुर्भिक्षके दिनोंके लिये सुरक्षित रखता जाता था और मकान पड़नेपर इस भाण्डारीले भन्न बांटा जाता था। जगली फसलके वीजके लिये भी यहीसे दिया जाता था
चन्द्रगुतके राज्य के अंतिन चालमें एक भीषण दुर्भिक्ष पड़ा था। खेतोंकी सिंचाईना पुरा प्रबन्ध रखा जाता था, जिसके लिये एक विभाग अलग था। चन्द्रगुतके काठियावाड़के शासक पुचगुप्तने गिरनार पर्वतके समीप 'सुदर्शन' नामक झील बनवाई थी। छोटी बड़ी नहरों द्वारा सारे देशमें पानी पहुंचाया जाता था। नहरमा महकमा भावपाशी-कर वमुल करता था। इसके अतिरिक्त किसानोंसे पदावारचा चौधाई भाग दमूल किया जाता था। मायात निर्यात आदि और भी कर प्रजापर लगू थे। राज्यमें किसी प्रचारकी अनीति न होने पाये, इसके लिये
__ चन्द्रगुप्तने एक गुप्तचर विभाग स्थापित जिया गुप्तचर विभाग
"' था। नगरों और प्रांतोंकी समस्त घटनामोंपर दृष्टि रखना बोर सम्राट अथवा अधिकारी वर्गको गुप्तरीलिसे सुचना
४ भामारा० मा० २ पृ० ४९ | १-लाभाइ० पृ. १३७ । २-माइ० पृ. ६४ । ३-जराएतो. सन् १८९१ पृ. ४७ ।