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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर ।
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भी इस दिगम्बर दीक्षाको ग्रहण किया था। बौद्धाचार्य बुद्धघोष अचेलक शब्द के अर्थ नग्न ही करते हैं । जैन मुनियों का उल्लेख स्वयं जैन ग्रन्थों एवं बौद्धोंके पाली और चीनी भाषाओंके ग्रन्थोंमें भी अचेलक रूपसे हुआ मिलता है । हिन्दुओं के प्राचीन से प्राचीन शास्त्रोंमें भी जैन मुनियोंको 'नग्न' 'विवसन' आदि लिखा है । अचेलक अर्थात् नग्न दशा ही कल्याणकारी है और यही मोक्ष प्राप्त कराने का सनातन लिंग है, यह बात जैनमत में प्राचीनकालसे स्वीकृत है ।
अतएव जैन मुनियोंके यथाजात दिगम्बर वेषमें शंका करना वृथा है । वास्तवमें सांसारिक बंधनोंसे मुक्ति उसी हालत में मिलसक्ती है, जब मनुष्य वाह्य पदार्थोंसे रंचमात्र भी सम्बन्ध अथवा संसर्ग नहीं रखता है । इसी कारण एक जैन मुनिको अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं पर सर्वथा विजयी होना परमावश्यक. होता है । इस विजय में उसे सर्वोपरि 'लज्जा' को परास्त करना पड़ता है । यह प्राकृत सुसंगत है। संयमी पुरुषको असली हालतअपने प्राकृत स्वरूपमें पहुंचना है । अतएव यह यथाजात रूप उसके लिये परमावश्यक है । उस व्यक्तिकी निस्पृहता और इंद्रियनिग्रहका प्रत्यक्ष प्रमाण है । नग्नदशामें वह सांसारिक संसर्गसे छूट जाता है। कपड़ों की झंझटसे छूटनेपर मनुष्य अनेक झंझटोंसे छूट
१-कचेलको 'ति निच्चेलो नग्गो-पापञ्च सूदन, Siamese Ed. II, p. 67. २ - भमबु० पृ० २५५ - दीनि पाटिक सुत्त । ३-वीर, भा० ४ पृ० ३५३ | ४-ॠग्वेद १० - १३५; वराहमिहिर संहिता १९-६१ व ४५-५० महाभारत ३।२६-२७९ विष्णुपुराण ३३१८; भागवत ४१३० वेदान्तसूत्र २/२/३३-३६ दशकुमारचरित १ इत्यादि ।