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ज्ञात्रिक क्षत्री और भगवान महावीर। [५६ निग्रन्थ (निगन्थ) के भाव 'बन्धनोंसे मुक्त के हैं, यह बात बौद्ध शास्त्रोंसे भी प्रकट है।
उस समय जैनोंका उल्लेख 'निर्ग्रन्थ' नामसे होता था; जैले 'निग्रन्थ' जैनी है।
है कि वे उपरान्तमें 'आईत' नामसे प्रख्यात
' हुये थे। किन्हीं लोगोंका विश्वास है कि जैन तीर्थंकरोंकी शिक्षा उस समय लिपिबद्ध नहीं थी, इसलिये उनको लोग 'निन्ध' कहते थे; किन्तु जैन शास्त्रोंमें निर्ग्रन्थका अर्थ 'ग्रंथियोंसे रहित' किया गया है और इस शब्दका प्रयोग प्रायः जैन मुनियोंके लिये ही हुआ है; यद्यपि बौद्ध शास्त्रोंमें वह गृहस्थ और मुनि सबके लिये समान रूपमें व्यवहृत हुआ मिलता है। वौद्धोंके 'चुल्लनिद्देस' में निग्रन्थ श्रावकोंका देवता निग्रन्थ लिखा है । यहाँपर निग्रन्थ शब्द दि० जैन मुनिके लिये प्रयुक्त हुआ है; किन्तु 'महावग' के सीह नामक कथानक और 'मज्झिमनिकाय के 'सञ्चक निगन्यपुत्त' के आख्यानमें 'निर्ग्रन्थ ' शब्द जैन गृहस्थ के लिये व्यवहृत हुआ है । अतएव उस समय जनसंघ मात्र 'निग्रन्थ ' नामसे परिचित था। इस कारण भगवान महावीर ज्ञातृपुत्र भी निर्ग्रन्थ ' कहे गये हैं। बौद्ध कहते हैंकि महावीरनी सर्व विद्याओं के पारगामी थे, इस कारण 'निगन्ध' कहलाते थे।
१-ढायोलॉग्स ऑफ दी बुद्ध, मा० २ पृ. ७४-७५ । २-वीर, भा० ५ पृ. २३९-२४० । ३-मूला० ३० । ४-ममबु० पृ० २३५ । " ५-निगळ सावकानाम् निगढो देवता पृ. १७३ । ६-महा० पृ० ११६॥ -मनि० भा० १ पृ. २२५ । ८-मवु० पृ० ३०२ ।