Book Title: Samyaktva Shalyoddhara
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 6
________________ करतेहैं, इसी प्रकार इस ग्रंथके कर्ता महामुनिराज १००८ श्री मद्विजयानंदसूरि(आत्मारामजी)महाराजभीजैनसिद्धांतको वांचकर ढूंढकमतको असत्य जानकर कितनेही साधुओंके साथ ढूंढकपंथको त्यागकर पूर्वोक्त शुद्ध जैनमतके अनुयायी बने, जिनके सदुपदेश से पंजाब मारवाड़ गुजरात आदि देशों में घने ढुंढियोंने ढूंढक मत को छोड़कर तपागच्छ शुद्ध जैनमत अंगीकार किया है । तपागच्छ यह बनावटी नाम नहीं है परंतु गुणनिष्पन्न है क्योंकि श्रीसुधर्मास्वामीसे परंपरागत जैनमतके जोधनाम पडे. हैं उनमेंसे यह ६ छठा नामहै जिन ६ नामोंकी सविस्तर हकीकत तपागच्छकी पदावलिमें है * जिससे मालूम होता है कि तपागच्छ नाम मूलशुद्ध परंपरागत है और दूंडकमत विनागुरुके निकला हुआ परंपरा से विरुद्ध है ॥ इस ढूंढक मतमें जेठमल नामा एक रिख साधु हुआ है उसने महा कुमतिके प्रभावसे तथागाढ मिथ्यात्वके उदयसं स्वपर को अर्थात् रचनेवाले और उसपर श्रद्धा करनेवाले दोनोंको भव समुद्र में डबोनेवाला समकितसार (शल्य) नामा ग्रंथ १८६५ में बनाया था परंतु वोहग्रंथ और ग्रंथका कर्ता दोनोंही अप्रमाणक होनेसे कितनेक वर्षतक वोह ग्रंथ जैसाका तैसाही पड़ा रहा, संवत् १९३८ में गोंडल (काठियावाड़) निवासी कोठारी नामचंद हरीचंदने अपनी दर्गतिकी प्राप्तिमें अन्यको साथी बनानेके वास्ते राजकोट (काठियावाड़) में छपाकर प्रसिद्ध किया। . पूर्वोक्तं ग्रंथको देखकर शुद्ध जैनमताभिलाषी भव्यजावोंके उद्धारके निमित्त पूर्वोक्त ग्रंथके खंडन रूप सम्यक्त्वशल्योद्धार '* देखो जैन तस्यादर्शका बारवां परिच्छेद ।

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