Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group
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संवेगरंगशाला
प्रस्तावना
आत्माना सम्यग् दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनो विकास करनारा गुणोनुं पण वर्णन छे. अहिं ग्रहणशिक्षानो अर्थ ए समजवानो छे के, गुरु महाराज पासेथी साधुपणुं अने श्रावकपणुं शी रीते आराधवं एनी समजण लेवी अने आसेवन शिक्षानो अर्थ ए छे के, ए समजणने जीवनमां जीवीने आत्मसात् करवी.
आ शिक्षाओ विनय विना आवती नथी माटे पेटाद्वारमा विनयद्वार पण पाडवामां आव्युं छे. विनयनो भंग करी जे साधु के श्रावक धर्ममा आगळ वधवा मागे छे, ते कदी पण आगळ वधी शकतो नथी. केम के परमात्मानं शासन विनयने धर्मना मूळ तरीके ओळखावे छे.
उत्तराध्ययन सूत्र जे प्रभुभाषित छे, तेना ३६ अध्ययनोमां पहेलुं अध्ययन विनय अध्ययन छे. केम के विनय न होय तो बाकीना अध्ययनमा बतावेला गुणो जीवनमा यथार्थरूपे आवी शकता नथी. माटे ज प्रथम अध्ययन विनयर्नु राखवामां आव्युं छे. आ सिवायना बीजा प्रथम मुख्यद्वारना पेटाद्वारो जे समाधिद्वार, मनोनुसिट्ठीद्वार, अनियतविहारद्वार, राजद्वार वगेरे द्वारो जे बताववामां आव्या छे ते जिज्ञासुओने ग्रन्थमां जोई लेवानी अमारी भलामण छे. प्रत्येक पेटाद्वारनुं वर्णन जो करवामां आवे तो प्रस्तावना ज स्वयं एक ग्रन्थ बनी जाय.
हवे बीजं द्वार परगणसंक्रमण नामनुं छे. एना पेटाद्वारो १० छे. दरेके दरेक द्वारमा गुरुआज्ञानी मुख्यता, कषायने वोसिराववानी 'भावना, साधुने सर्वथा स्त्री परिचयनो त्याग, दश प्रकारनी सामाचारीनुं विधिपूर्वक पालन वगेरे बताववामां आव्युं छे.
__ आ आचारोमा ज्यां ज्यां स्खलना थाय छे, त्यां त्यां गुरु-शिष्यभावमां खामी आवे छे. एक गच्छना आचार्य बीजा | गच्छना आचार्य उपर जेवो वात्सल्यभाव राखवो जोईए तेवो राखी शकता नथी अने साधक सामाचारीनुं पालन करवामां | शिथिल बनवाथी स्वच्छंदी बने छे.
त्रीगँ मूलद्वार ममत्व उच्छेद नामनुं छे. आना नव पेटाद्वारो छे. तेमां शरूमा आलोचनाविधानद्वार मूकवामां आव्युं छे आत्माने हळवो करवा माटे प्रत्येक साधु अने श्रावके करेला पापर्नु प्रायश्चित्त लेवानुं होय छे. तेमां प्रायश्चित्त केवी रीते लेवू, एना आपनारनी लायकात, लेती वखतनी विधि वगेरेनुं वर्णन विस्तारथी करवामां आव्युं छे. आलोचना नही लेनार साधु के श्रावक सशल्य कहेवाय छे, अने शल्यवाळो साधना करे तो पण ज्यां सुधी शल्यनी आलोचना न ले त्यां सुधी शुद्ध थतो नथी. वगेरे वगेरे घणो सुंदर विचार आमां करवामां आव्यो छे.
आ द्वारमा शय्या-संथारो वगरे क्या करवो, प्रत्याख्यान आदि द्वारा शरीर, ईन्द्रियोने अने मनने केवी रीते काबुमां लेवा, खमवा खमाववा द्वारा ए कषायोने केवी रीते अंकुशमां राखवा तेनुं आबेहूब वर्णन करवामां आव्युं छे: अहिं शय्या शब्दनो अर्थ वसति समजवानो छे. साधुनी वसति केवी होय? आजु बाजु पाडोश होय ते पण केवो होय? स्त्रीना शब्दो ज्यां न संभळाय. रूप न देखाय वगेरे वगेरे वातोनुं वर्णन करी साधकने खूब खूब सावचेत रहेवा सूचन करवामां आव्युं छे.
छेल्लुं चोथु समाधिलाभ द्वार छे. आना पेटाद्वारो नव छे. आ दरेक पेटाद्वारोना अवान्तर द्वारो पण आपवामां आव्या छे. अमांना एक एक द्वार आराधना माटे ध्यान खेंचे तेवा छे. तेमां पण चतुःशरणगमन, सुकृतअनुमोदन ने दुष्कृत-निंदा द्वारो, जे पेटाद्वारोमां पण अवांतर द्वारो छे-ते सविशेष ध्यान खेंचे तेवा छे.
___ अरिहंत आदिनुं शरण शा माटे स्वीकारवानुं छे? ए तारको राजकुलमा जनम्या हता. सुखसामग्रीमां उछरी मोटा थया हता. ऋद्धिना ढगला वच्चे एमनुं जीवन पसार थई रह्यु हतुं. माताना गर्भमां आवतां जेमने ईन्द्रादि देवताओ नमता हता, तेमणे पण माथाना वाळ उखेडी लोच करी स्वपर हितार्थे प्रवज्यानो स्वीकार कर्यो अने ज्यां सुधी घाती कर्मोनो क्षय न थयो त्यां सुधी पलांठी वाळीने तेओ बेठा पण नहीं. आवा परमात्माने शरणे एटला माटे ज जवानुं छे के "संसारना गमे तेटला सुंदर मनमोहक के सानुकूल सुखो मळे तो पण ते त्याज्य छे" आवी बुद्धि आवे त्यारे ज आ परमात्माने शरणे साची रीते जई शकाय छे. बाकी परमात्मानुं शरणुं मळतुं नथी. ए वात निश्चित छे. आ रीते परमात्मानुं शरणुं प्राप्त करनार जे पुण्यशाली आत्मा भूतकाळना दुष्कृतोनी गर्दा करे, सुकृतोनी अनुमोदना करे अने आत्माने अरिहंतमय बनाववा तेनुं ध्यानादि करे छे अने अवश्य संघयणादि सामग्री संपन्न होय तो ते, ते ज भवमां अथवा बहु ज थोडा भवमां सकलकर्मनो क्षय करी मुक्तिपदने पामे
संसार ए कर्म राजाए ऊभो करेलो निर्दयता अने निष्ठुरतापूर्वकनो तमाशो छे. संसारी जीवो ए तमाशो के नाटक भजवनारा नाटकीआ छे. चार गति ए नाटकशाळानी रंगभूमि छे. कर्मराजा ए नाटकनो सूत्रधार (मेनेजर) छे. ग्रंथकार कहे छे
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