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मन्व-ब्राह्मणम् । हसिते च यत् ॥ तानि ते पाहुत्या सर्वाणि शमयाम्यहम्॥३॥ आरोकेषु च दन्तेषु हस्तयोः पादयोश्च यत्॥ तानि ते पूर्णाहुत्या सर्वाणि शमयाम्यहम् ॥४॥ जोरुपस्थे जड्वयोः सन्धानेषु च यानि ते ॥ तानि ते पूर्णाइत्या सर्वाणि शमयाग्य हमाायानि कानि च घोरा__ हे कन्ये ! 'ते' तव 'शोलेषु' व्यवहारेषु 'यत्' 'पापक' यच्च 'भाषिते' कथन-क्रियायां 'च' अपिच 'हसिते' हसन-क्रियायां पापकम् अस्ति–'अहं' इत्यादि ॥ ३ ॥
हे कन्ये ! 'ते' तव 'आरोकेषु' दन्तान्तरेषु (मेड़े इति प्रसिद्ध षु) 'च' अपिच 'दन्तेषु', 'हस्तयोः', 'पादयोः' 'यच्च' पापकम् अस्ति-'अहं' इत्यादि ॥ ४॥ __ हे कन्ध ! 'ते' तव 'जर्बोः' जरु-इययोः 'उपस्थे' गोपनौये इन्द्रिये 'जङ्घयोः' 'च' अपिच ‘सन्धानेषु' अन्यान्य-प्रदेशेषु 'यत्' पापकं अस्ति–'अहं' इत्यादि ॥ ५ ॥
কন্যে ! তােমার ব্যবহারে যে পাপ আছে, এবং তােমার কথনে, হসনে, যে পাপ প্রকাশ পায়—আমি এই শেষ আহুতি দ্বারা তৎ সমস্তই উপশমিত করিতেছি ॥৩
হে কন্যে ? তােমার দন্তের মেড়েগুলিতে এবং দন্তসকলে, হস্তদ্বয়ে, ও পাদদ্বয়ে যে পাপ আছে— আমি এই শেষ অহুতিদ্বারা তৎ সমস্তই উপশমিত করিতেছি ॥৪
হে কন্যে ! তােমার উরূদ্বয়ে, উপস্থেন্দ্রিয়ে,জদ্বয়ে এবং অন্যান্য সন্ধি প্রদেশে যে পাপ আছে—আমি এই শেষ আহুতি দ্বারা তৎসমস্তই উপশমিত করিতেছি ॥৫
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