Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २० ६९.१-३। मिनोवालि पृथुष्टुके ॥. सुभद्रे पथ्ये रेवति पथानो यश प्राय स्वाहा॥३॥ ये यन्ति प्राञ्चः पन्यानो य उबोत्तरत शाययुः ॥ ये चेमे सर्व पन्थानस्ते भितॊ यश भावह स्वाहा॥३॥ यथा यन्ति प्रपदो यथा मामादेवताइयं विद्यते । यूयं यथा' सन्मार्गेण 'म:' प्रस्मान् ‘ययः' 'भावह' प्रापय ॥ २ ॥ - 'यथा' 'प्रपदः' प्रपदाः पादाग्रभागाः उत्तरोत्तरं 'यन्ति' गच्छन्ति, 'मासा:' 'यथा' 'अहजर' अहोभिः जरात्वम् अव. सानभावं. यन्ति' गच्छन्ति; 'शोधातारः' श्रियो विधातारः देवाः 'एवं' एवमेवोत्तरोत्तरं 'सर्वतः' सम्पूर्णत: 'मा' मा 'समवयन्तु' समता भवन्सु, श्रियं ददतु इति भावः ॥ ३ ।। 'ये' 'पयानः' मार्गाः 'प्राञ्चः' 'यन्ति', 'ये' 'उत्तरोत्तरतः' . হে হয়ি প্রভৃতি দেবতারা ! তােমরা সকলে সৎমার্গের शांना यांमानिटक या नाउ कतिमा मा७ ॥ २ ॥ . যেরূপে পাদের অগ্রভাগ সকল, উত্তরােত্তর যাইতেছে, যেরূপে মাস সকল দিবার ক্ষয়ে ক্ষীণতা প্রাপ্ত হইতেছে ; সেইরূপে ঐ বিধাতা দেবতারা উত্তরােত্তর আমাতে সম্পূর্ণ রূপে সমবেত হউন, অথাৎ-শ্র প্রদান করুন। ৩। | যে প্রাচীন পথ-সকল চলিতেছে, যে প্রাচীন পথ-সকল Campanario २-५-- एषां चतुणी इय्यादवी देवता:। अनुष्ट प छन्दः । श्रारण्याय हायशी की निगा ___ स्वतायम होमे विनियोगः । ... . " 'हये ग इत्ये कैकयाभलिना जुहयात प्राङपक्रम्य यसमम पधील्याई' गो. ८ ! For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145