Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta

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Page 116
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ मन्त्र-ब्राह्मणम् । वृहस्पतिरिव बध्याविनाविव रूपेणेन्द्राग्नी व बलेन ब्रह्म भाग एवाहं भूयासं पाप्मभागा मे द्विषन्तः ॥ १४ ॥ वायु यथातिप्रभाववान् तथा भूयासम्, 'गन्धे न' गन्ध ग्रहणाविषये ‘सोमश्चन्द्रमा स च गन्ध ग्राहकतया प्रशस्य तथा वत्भूयास 'ब्रहस्पतिः' जगत्पतिः सइव 'वुद्धया' युक्त भूयासम्, 'अश्विनौ' अखाविव वेगगमनयौली सूर्य चन्द्रौ तहत् रूपेण' युक्तो भूयासम्, ‘इन्द्राग्नौ' प्रज्ज्वलनेन सहावस्थितीग्निर्यथा अतिवलवान् ‘इव' तथा 'वलेन' युक्तो भूयासम् अहम् 'ब्रह्मभागः' 'एव' ब्रह्मभागी ब्रह्मध्यान पर एव 'भूयासम्' 'मे' मम 'हिषन्तः' शत्रवः 'पाप्म भागाः' पाप भागिनः सन्तु ।। १४ ।। রূপে বেগে-গমনশীল অশ্বিন দ্বয়ের (সূৰ্য্য চন্দ্র) ন্যায়, অত্যুৎকট বলে যেন জ্বালা সহ অবস্থিত অগ্নির ন্যায় হইতে পারি। আমি ব্ৰহ্মাংশে (পবিত্র অংশে) যেন জন্ম গ্রহণ করি ; আমার শত্রুরা পাপভাগী হইয়া যেন জন্ম গ্রহণ कराज ॥28॥ ॥ इति सामवेदिये मन्त्र वाह्मणे द्वितीय 'प्रपाठकस्य चतुर्थ खण्डो हितीयस्य प्रथमाई श्च ॥ .. For Private And Personal Use Only

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