Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० मन्त्र - ब्राह्मणम | जहि ॥ ४ ॥ श्रग्नि वायु चन्द्र सूर्ष्याः प्रायश्चित्तयो यूयं देवानां प्रायश्चित्तयस्य ब्राह्मणोवो नाथकाम उपध वामि यायाः पापी लक्ष्मी र्या पतिघ्नी यापुचाया पर व्या ता अस्या अपहृत ॥५॥ विष्णुर्योनिं कल्पयतु त्वष्ट ܬ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अस्मदादीनां 'प्रायश्चित्तिः' दोषस्य उपशमिता 'असि', अतः 'नाथ - काम:' 'अहं' 'ब्राह्मण:' 'त्वाम्' 'उपधायामि'; 'अस्याः' 'अ-पत्र्या ' पशवे हिता पशव्या तदविपरीता पशु-नाश-दूषणदूषिता 'तनू:' ' या ' स्यात्, 'अस्या:' 'ताम्' 'अपजहि ॥४ “ हे अग्नि- पायु-चन्द्र-सूर्य्या: 'यूयं' 'देवानाम्' अस्मदादीनां 'प्रायश्चित्तयः' दोषस्य उपशमितार: स्थः' अतः ' नाथ- काम:' 'अहं' 'ब्राह्मणः ' ' व ' युष्मान् ' उपधावामि' ; 6 C अस्याः ' 'पापी लक्ष्मी' 'या' तनूः, पतिनी' 'या' तनूः, अपुत्रधा' 'या' तनूः, अ-पशव्या' 'या' 'तनूः, 'अस्या:' 'ताः तद्विधाः सम स्ताः तन्त्रः 'अपहत' दूरं कुरुत दूषण दूषिताः तन्वः दूरौक्कृत्य निर्हुष्टाः कुरुतेत्यर्थः ॥ ५ হে অগ্নি, বায়ু, চন্দ্র ও সূর্য্য ! তোমরা আমাদের দোষের উপশমকারী হইতেছ অতএব নাথ-কাম আমি ব্রাহ্মণ, তোমাদিগকে অর্চ্চনা করিতেছি, তোমরা এই বধূর শরীরে অমঙ্গল শোভা, পতি বিয়োগ-কারণ দোষ, বন্ধ্যা দোষ, অপশব্য দোষ প্রভৃতি যে কোন দোষ থাকে, তাহা দূর করিয়া দাও ॥৫ * যে দোৰে গো-মহিযাদি গৃহপশর হানি হয় । For Private And Personal Use Only

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