Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मन्त्र-ब्राह्मणम् । छत् सा घेतु रभवविश्वरूपा॥ संवत्मरस्य या पली सानो प्रस्तु-समलने ॥३।। या देवाः प्रति पश्यकि रानी -मिवायतीं। मा नः पयस्खती दुहा उत्तरा मुत्तराप समाम् ॥ १४॥ संवत्सरस्य प्रतिमा ___ 'एषा एव सा अष्टका, 'या' 'प्रथमा' पूर्वकालौना एक 'वि ऐच्छत् विशेष प्रकाशमाप्तवती । 'सा इयं 'विश्वरूपा बहुजनसेव्यत्वात् - बहुरूपा 'धेनुः' यथाभिलषितप्रदत्वात् काम-धेनुरिव । 'या' इयं 'संवत्सरस्य' ' पत्नी भोग्यत्वात् उच्यते वेदे, 'सा' 'नः' अस्माकं 'सुमङ्गली' कल्याणी · प्रस्त' ॥ १३ ॥ ___· देवाः' द्योतमानाः ‘यां' 'धेनुम् इव आयतीम् यथा गोष्ठात् धेनु रागाताव तथैव वर्षान्त पुनरागच्छतीव अष्टका इति तां 'रात्रौं' उत्तराष्टकां प्रति ‘पश्यन्ति' आगमन-पथं निरीवन्ति, 'सा' अष्टका रात्री ‘दुहा' ' कम्म-फलानि दुधन्ते यस्था स्तथा भूता 'उत्तराम् उत्तराम' तरोत्तरं 'समां' वर्ष 'पयखतो' अध्यधिक-दुग्धवतीवभव तु ॥ १४ ॥ . | এই অষ্টকাই—সেই, যে পূৰ্ব্বকালেতে বিশেষরূপে প্রকাশ পাইয়াছিল, যে অষ্টক বহু লােকের সেব্য বিধায়, বহুবিধ অভিলষিত প্রদান করায় কামধেনু স্বরূপ, এবং যে-সংবৎ সর কাল পর্যন্ত ভােগ্য হওায় সংবৎসরের পত্নীস্বরূপ, সেই অষ্টকা আমাদিগের সমন্ধে সুমঙ্গল দায়িনী হউক। ১৩। গােষ্ঠ হইতে ধেনুর আগমনের ন্যায় বর্ষান্তে পুনরাগমশীল যে—সেই উত্তর-অষ্টকা, তাহার আগমন পথ দেব १३, १४, १५ ---एषां मर्च पूर्ववद । बहतीच्छन्दः इत्ये व भेदः । For Private And Personal Use Only

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