Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta
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१०४
मन्त्र ब्राह्मणम् । अपन्तं मा माप्रतिज्ञापी ईह्वन्तं मा माप्रतिहौषी: कुर्वन्त मा माप्रतिकावर्षी स्त्वां प्रपद्ये, त्वया प्रसूत इदं कर्म करिष्यामि तन्मे राध्यतां तन्मे समृध्यता त न्म उपपद्यतार समद्रो विश्वव्यचा ब्रह्मा नुजानातु हर्यो मा विश्ववेदा ब्रह्मणः पुत्रोनुजानातु त्वमसौति शेषः । 'ते' तव द्वादश संख्यकाः ‘पुत्राः' आत्मभावाः इति यत् प्रसिद्ध' तत् सत्यम् । 'ते' पुत्राः 'संवत्सरे संवत्सरे' प्रतिहायने 'कामप्रेण' ययाभिलषितफलेन 'यजन' 'त्वाम् 'याजयित्वा' 'पुनः' पुनश्च 'ब्रह्मचर्यम्' ब्रह्म-सामौप्यम् ‘उपयन्ति' प्राप्नुवन्ति । 'त्व 'देवेषु' समस्त प्रदीप्त-वस्तुषु ‘ब्राह्मणः' मुख्यः 'असि', अहं 'मनुष्ये षु' ब्राह्म गः ब्राह्मण कुलोत्पन्न इति यावत्, ‘ब्राह्मणो वे ब्राह्मणम्' सजातीय एव सजातीयम् उपधा वति उपकरीति, अतः 'जपन्त' 'मा' मां ‘मा प्रतिजापोः' प्रतिकुलजपं मा कुरु-'कुर्वन्त' यागाद्यनुष्ठान कारिणं 'मा' প্রতি প্রতিকূল যাগ করিও না, আমি তােমাকে শরণ লইতেছি ; তােমাকর্তৃক অনুজ্ঞাত হইয়াই আমি এই কাৰ্য্য করিতেছি ; তােমার প্রসন্নতাতেই আমার এই কাৰ্য সিদ্ধ হইবে, এবং তোমার প্রসন্নতাতেই আমার এই কাৰ্য্য সমৃদ্ধি যুক্ত হইবে; তােমার প্রসন্নতাতেই আমার এই কাৰ্য্য উপপন্ন হইবে ; আপনি সমুদ্রের ন্যায় অসীম, সর্বত্র গামী, ব্রহ্মা, অতি বৃহৎ পরিমাণক) হইতেছেন ; আপনি আমাকে অনুজ্ঞা করুন ; আপনি তুৰ্য্য (দব, বাড়ব, জাঠর, বৈদ্যুৎ ভেদে চতুর্থ) সৰ্ববিৎ, ব্রাহ্মণের পুত্র ঈশ্বরের পুত্র]
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