Book Title: Samvedasya Mantra Bramhnam
Author(s): Satyabrata Samasrami
Publisher: Calcutta
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२प्र० 8 ० ५- ---·
१०३
यम कुम्भे अन्तः संनिहितानि बल्भञ्च वल्साञ्च रचतो प्रमनी अनिमिषतः सत्यं यत्ते द्वादश पुत्रा स्ते त्त्वा सम्बत्सरे सम्बत्सरे कामप्रेण यज्ञेन याजयित्वा पुनर्ब्रह्मचर्यमुपयन्ति त्व' देवेषु ब्राह्मणोऽ यह मनुष्येषु ब्राह्मणो बै ब्राह्मण रूपंघावत्यप त्वा धावामि शुकण-पत्रादी "मय्या' सुखगयन-स्थानम् अस्ति । 'अन्तरिक्षे ' च 'हिरण्ययं' हिरण्मय' 'विमितं विशेषेण निर्मित 'गृहा' गृहम् अस्ति विदुरक्रूपेण विद्योतमानवात् । 'तत्' तत्र च गृहे, 'अयस्मये' लोहमये 'कुम्भे' घटे 'अन्तः' मध्ये, 'सन्निहितानि' स्थापितानि इत्र देवानां इन्द्रादीनां 'हृदयानि' मनांसि सन्ति सर्व्वेषां हविर्वाहकत्वात् । 'अनिमिषतः ' अक्षिण अनिमौलितः ' रचसः' अपेक्षया 'श्रमणो' प्रमाद शून्यः स अधिक: 'वलभृत्' वल-शाली 'च' अपिच 'वलसात्' वलस्य सोदयिता কারী হইতেছ তোমার দ্বাদশটী আত্ম- ভাবাপন্ন পুত্রস কল যাহা প্রসিদ্ধ আছে, তাহা সত্য ; সেই সকল পুত্রেরা প্রতি বৎসরে যথাভিলষিত ফলপ্রদ যজ্ঞের দ্বারা তোমাকে যজন করাইয়া পুনঃপুনঃ ব্রহ্ম-সামীপ্য প্রাপ্ত করায় ; তুমি সমস্ত দেবতাদিগের (সমস্ত প্রদীপ্ত বস্তু দিগের) মধ্যে ব্রাহ্মণ [মুখ্য] হইতেছ, আমি মনুষ্যদিগের মধ্যে ব্রাহ্মণ হইতেছি; ব্রাহ্মণই ব্রাহ্মণের অর্থাৎ স্বজাতীয়ই সজাতীযের বিশেষ উপকার করিতে পারে অতএব তোমার জপানুষ্ঠায়ি আমার প্রতি প্রতিকূল জপ করিও না; তোমার উদ্দেশে হবন কারি আমার প্রতি প্রতিকূল হবন করিও না ; যাগাদ্যনুষ্ঠান কারি আমরা
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145