Book Title: Samudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ ( १७६ नरेलुं एक वहाण समुद्रमां मुबी गयुं, पण पोतानी पासे घणुं द्रव्य होवाथी शेठे तेनी कशी पण दरकार करी नहीं. अनुक्रमे संपूर्ण समये ते गाये एक वाबरमाने जन्म प्राप्यो. ते पण शरीरमां घणोज पुष्ट तथा मनोहर स्वरूपवालो हतो, तेथी शेग्नो अतिशय प्यार ते वाबरका पर थयो; पण ते वाबरमाना पाठलना जमणा पगना सायलमां वांदराना आकारनुं श्याम रंगनुं चिह्न हतुं, तेथी ते अशुनने सूचव - नारो हतो, पण शेवने ते वातनी कशी मालुम पमी नहीं, केमके जावि जाव कोथी पण टाली शकाता नथी. ज्यारथी ते वावरडानो जन्म थयो, त्यारथी शेउनी संपत्ति धीमे धीमे बी थवा लागी, पण शेठनो प्यार तो ते गाय तथा वाबरमा पर अतिशय वधवा लाग्यो . त्रण वर्षो वीत्या बाद शेठनी सघली दोलतनो नाश थयो, तथा पोते घणीज गरीबी हालतमां श्रावी पड्यो; पण तेना मनमांथी जैनधर्मनी श्रद्धा गइ नहीं, अने तेथी ते विचारखा लाग्यो के जीवे पूर्वे जेवां कर्मों करेलां बे, तेवांज जवांतरमां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226