Book Title: Samudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 218
________________ (१६) व्यसन होवाथी राजाए तेने काढी मूक्यो. ते फरतो फरतो कोश्क गामे श्राव्यो. पोते महाध. मवंत जैनमति , परंतु खावाने कार पण नहीं होवाथी शहेरमां याचवाने गयो. तिहां फरतां एक वणिके नेसने माटे अमद रांध्या हता ते तेणे मूलदेवने आप्या. ते लश् मूलदेव वामीमां श्राव्यो अने मनमां चिंतववा लाग्यो जे कोइ अतिथि श्रावे तो तेने नोजन आपीने पढ़ी हुँ नोजन करूं. एटलामा एक साधु पण त्यां आव्या, तेने मूलदेवे बाकला वहोरावी दीधा अने पोते आनंदथी सूझ रह्यो. त्यां निराबाधपणे संपूर्ण चंडमा में गल्यो एवं स्वप्न तेणे दी, अने देखीने जागी गयो. वली जे वामीमा मूलदेव सूतो हतो तेज वाडीमां एक बावानो मठ हतो. ते मठमां ते बावाना चेलाए पण तेवुज स्वप्न दीवं, देखीने जाग्यो भने प्रजातमा पोताना गुरुने कडं. ते वारे गुरुए कह्यु जे तुं श्राज गाममां निदा सेवा जश ते वारे तने चंझमा जेटलो मोटो अने घृते चो. पमेलो रोटलो गोल सहित मलशे. ते सांजली चेलोराजी थश्ने जिदा सेवा गयो ते वारे तेने गुरुना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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