Book Title: Samudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 221
________________ " ८८ ( ११७) बुं.” ए सांजलीने सहीयर तुरत बोली उठी के " एवको मोटो समुद्र पीतां तारुं पेट केम फाट्युं नहीं ?” एम हांसीमां बोलीने चालती थइ. पछी वशिकस्त्रीए गुरु पासे गहुली करी स्वप्ननो अर्थ पूठ्यो, एटले गुरुए तेनो इंगित आकार जोश्ने कयुं के तमे ए स्वप्ननी वात प्रथम कोने कही बे ? वणिकस्त्रीए उत्तर श्राप्यो के " मारी सहीयरने कही बे. " पठी गुरुए कयुं के " जो तमे ते वात प्रथम कोइनी आगल न कही होत तो जाग्यवंत पुत्रनी प्राप्ति थात, पण हवे तो आजथी सातमे दिवसे तमने कष्ट थशे, माटे घेर जइ धर्मध्यान तथा दान पुन्य विगेरे आत्मसाधन करो. " पढी ते स्त्री घेर यावी दान पुन्य विगेरे धर्मकार्य करी सातमे दिवसे मृत्यु पामी, माटे सारुं स्वप्न जेवा तेवा माणस आगल कहेतुं नहीं. कोइ योग्य न मले तो गायना कानमां कहेतुं, पण कह्या विना फल न पमाय. "" Paraastani वे तो फरीने सूइज अने ते कोइनी श्रागल पण कहेवुं नहीं; कारणके तेथी ते फलवंत यतुं नथी. प्रथम जे माणस खराब खप्न जोइने पाठ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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