Book Title: Samudrik Shastranu Gujarati Bhashantar
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ (२१७) कह्या प्रमाणे रोटलो मल्यो. हवे ते वात राजकुमार मूलदेवे सांजलीने विचास्युं जे हुं एनी आगल मारा स्वप्ननी वात कहीश तो मने पण एटर्बुज फल कदेशे, केमके जे खप्न एना चेलाए दीतुंबे ते में पण दी बे; माटे एनी श्रागल तो वात कहीश नहीं. एम विचारी हाथमां श्रीफल लश्ने शहेरमा गुरु बागल गयो. त्यां तेणे स्वप्ननी वात कही, ते वारे गुरुए कह्यु के तुं मारी दीकरी परणीश तो हुँ तने स्वप्ननुं फल कहीश. त्यारे मूलदेवेकडं के मारी नात जात तो तमे जाणता नथी श्रने तमारी पुत्री केम परणावो बो? ते वारे तेणे कडं के में सर्व वात जाणी जे एम कही तेने पुत्री परणावीने पनी स्वप्ननुं फल कडं के आ गामनो अपुत्री राजा श्राजथी सातमे दिवसे मरण पामशे अने तुं आ गामनो राजा थश. ते वात साची मानीने मूलदेव फरीने तेज वामीमां गयो. एम करतां सातमे दिवसे गामनो राजा पण मरण पाम्यो. ते वारे राजा विना कोश्ने चाले नहीं तेथी पंचे एका थश्ने एवो ठराव कत्यो के पाटवी घोमो, पाटवी हाथी अने पाटवी प्रधान इत्यादि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226