Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 155
________________ १४२ समाधिमरण के दो वर्षों में से एक वर्ष केवल कांजी आहार लेता है । अन्तिम बारहवें वर्ष के प्रथम छह महीने मध्यम तप तथा अन्तिम छह महीने उत्कृष्ट तप करते हुए व्यतीत करता है । " ९२ इस प्रकार व्यक्ति इन बाहर वर्षों में विभिन्न प्रकार के तपों की सहायता से एवं अनशनादि करके काय और कषाय को अल्प करता है। काय और कषाय को अल्प करने के अतिरिक्त वह अन्य कार्यों का भी सम्पादन करता है जिसका विस्तृत विवेचन भक्तप्रत्याख्यानमरण से सम्बन्धित अध्ययन में किया जा चुका है । ९३ जैसे विनयरूपी तप को अपनाना, समाधि, अनियत विहार, उपाधि जयणा, सल्लेखना, खामणा (क्षमा), समता, ध्यान आदि प्रकार की साधनाओं एवं आचारों का भी पालन इन बाहर वर्षों में किया जाता है। आचारांग, उत्तराध्ययन, मरणविभत्ति मूलाचार एवं भगवती आराधना आदि ग्रन्थों के आधार पर समाधिमरण लेने की विधि पर चर्चा करने पर हम पाते हैं कि समाधिमरण लेनेवाला व्यक्ति काय और कषाय को क्षीण करता है तथा समभावपूर्वक मृत्यु के आगमन की प्रतीक्षा करता है। समाधिमरण ग्रहण करने के लिए वह विविध क्रियाओं का सम्पादन करता है । यथा- अपने रहने के लिए योग्य स्थान की खोज करता है, योग्य स्थान मिल जाने पर उस स्थान का प्रमार्जन करके घास फूस आदि का संस्तारक बिछाता है। इसी संस्तारक पर बैठकर मन को एकाग्र करके तीर्थंकर एवं धर्माचार्य को वन्दन करता है । फिर अपने ग्रहीत व्रतों में लगे दोषों का प्रायश्चित्त करता है । तदुपरान्त यावज्जीवन के लिए हिंसादि समस्त पापों का त्याग करता है। फिर क्रमशः चारों आहारों का त्यागकर शरीर के पोषण के प्रयत्नों को त्याग देता है और समाधिस्थ होकर मृत्यु की प्रतीक्षा करता है। उपर्युक्त सभी ग्रन्थों में इसी प्रकार की चर्चायें कुछ-कुछ अन्तर और साम्य के साथ प्रतिपादित की गई हैं । काय और कषाय-क्षीण करने का निर्देश सभी ग्रन्थों में है। बारह वर्ष का समय किस प्रकार व्यतीत किया जाए इसी को लेकर इन ग्रन्थों में कुछ-कुछ अन्तर है। बारह वर्षीय समाधिमरण का उल्लेख आचारांग, उत्तराध्ययन, मरणविभक्ति एवं भगवती आराधना में है, जबकि मूलाचार में बारह वर्षीय समाधिमरण का उल्लेख नहीं मिलता है। आचारांग के अनुसार प्रथम चार वर्ष उपवास, बेला, तेला, चोला, पंचोला आदि विविध तप करने का निर्देश है, तो उत्तराध्ययन के अनुसार इन प्रथम चार वर्षों में दुग्ध आदि सरस भोजन के त्याग का निर्देश है। लेकिन भगवती आराधना में मात्र इतना ही कहा गया है कि प्रथम चार वर्ष व्यक्ति विभिन्न प्रकार के तपों की साधना से काय और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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