Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 188
________________ जैनधर्म में समाधिमरण की परम्परा १७५ समाधिमरण प्राप्त करने का उल्लेख करनेवाला यह शिलालेख प्राचीनतम है। इसी स्थान पर लगभग शक संवत् ६२२ का दूसरा शिलालेख उपलब्ध है, जिसमें चित्तर के मौनी गुरु की शिष्या नागमति गन्तियर के द्वारा तीन मास का अनशन करके शरीरांत करने का उल्लेख है। वहीं अन्य शिलालेखों में मनि चरित श्री२, नेड़बोर का पानप भट्टार', धर्मसेन के शिष्य बलदेव', उग्रसेन', मौनी के शिष्य गुणसेन", मेरुमाली की शिष्या धण्णे कुत्तारेवि गुरवि', उल्लिकाल', तार्थद, कालाविर के शिष्य कलापक११, ऋषभसेन के शिष्य नागसेन१२, म्मडिगलं.३, वट्टे के शिष्य सिंहनन्दिर के समाधिमरण व्रत ग्रहण करने का उल्लेख है। पुन: इसी स्थान पर मिले अन्य शिलालेखों में नन्दिसेन५, देवसेन१६, आचार्य चन्द्रदेव के समाधिमरण का उल्लेख है। कटवप्र पर्वत से प्राप्त शिलालेखों में जो सम्भवत: ७वीं शदी के हैं, में भी समाधिमरण लेनेवाले के नाम वर्णित हैं। इन शिलालेखों में , अनन्तमती१८, ससमितिगन्ति ९ के समाधिमरण का उल्लेख मिलता है। कटवप्र पर्वत पर कुछ और भी शिलालेख मिले हैं। ये सभी शिलालेख लगभग सातवीं शती के प्रारम्भ के हैं। इन शिलालेखों में कालान्तर के किसी मुनिरे (नाम स्पष्ट नहीं है।), गुणदेव सूरि२१, शुद्धमुनि२२, महादेवमुनि पुङ्गव२३, साध्वी राज्ञीमतिगन्ति, इन्द्रनन्दि२५ के समाधिमरण का विवरण मिलता है। इसके अतिरिक्त भी कुछ अन्य शिलालेख हैं जिनमें समाधिमरण लेनेवालों के नाम स्पष्ट नहीं हैं। छठी-सातवीं शताब्दी के ही कुछ शिलालेख अन्य स्थानों से प्राप्त हुए हैं। इनमें पेत्वणि२६ वंश के किसी व्यक्ति के समाधिमरण के उल्लेख के साथ-साथ, नविलूर संघ के आचार्य (नाम स्पष्ट नहीं हैं), माविअब्बे२८, नन्दिमुनि२९ पुर्त्तिय आदि व्यक्तियों के समाधिमरण लेने के विवरण हैं। मध्यकाल — मध्यकाल में भी समाधिमरण की परम्परा कायम .सी., क्योंकि विभिन्न स्थानों से प्राप्त मध्यकालीन शिलालेखों में भी समाधिमरण का उल्लेख मिलता है। इनम..., नेल्लूर, भरङ्गी, मैसूर तथा अन्य कई स्थान उल्लेखनीय हैं। बन्दलिके से प्राप्त शिलालेख में से एक शक संवत् ८४० का है। इसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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