Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ २०६ समाधिमरण को प्रशस्त माना जा सकता है। भावुकतावश व्यक्ति आत्मदाह या सती प्रथा तथा धार्मिक अनशन को एक धरातल पर रखता है। इन दोनों को एक ही धरातल पर रखा जा सकता है, लेकिन अनशन को आवेश से प्रेरित नहीं होना चाहिए। क्योंकि आवेश से रहित होने के कारण ही अनशन और सतीप्रथा अलग-अलग है। आवेश के वश में ही व्यक्ति जहर आदि खाकर मर जाता है। लेकिन इस स्थिति में भी व्यक्ति मृत्यु के भय से मुक्त नहीं हो पाता है। इस तरह के मरण के लिए व्यक्ति स्वतन्त्र नही हैं, क्योंकि मृत्युवरण की स्वतन्त्रता के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति आवेश से रहित तथा मृत्यु भय से मुक्त रहे। जब तक वह आवेशमुक्त और मृत्युभय से मुक्त नहीं रहता है, वह मृत्युवरण के लिए स्वतन्त्र नहीं है। ऐच्छिक मृत्युवरण के अधिकार का औचित्य उपर्युक्त चर्चाओं के बाद अब हमारे समक्ष एक प्रश्न यह उठता है कि क्या व्यक्ति को इच्छापूर्वक मरने का अधिकार मिलना चाहिए। यदि हाँ तो क्यों? और यदि नहीं तो क्यों नहीं ? इस प्रश्न पर अगर विचार करें तो हम पायेंगे कि यदि मनुष्य को अपनी इच्छानुसार मृत्युवरण का अधिकार दे दिया जाए अर्थात् इसे कानूनी रूप में मान्यता प्रदान कर दिया जाए तो इसके दो रूप हमारे सामने उपस्थित होगें। प्रथम तो यह कि इससे असाध्य रोग से पीड़ित, दूसरों की दया पर आश्रित एवं अशक्त तथा तिल-तिल कर मरते हुए व्यक्तियों के लिए यह एक सुखमय मृत्यु होगी। दूसरे इससे जीवन में निराशावादी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा एवं इस सुखमय मृत्यु के पीछे स्वार्थी तत्त्वों की गुप्त इच्छा पूर्ति भी हो सकती है। अत: इस समस्या पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है। आधुनिक सन्दर्भो को ध्यान में रखते हुए इसके पक्ष तथा विपक्ष में कुछ तर्क देकर इसके औचित्य का समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। आधुनिक युग जेट एवं कम्प्यूटर का युग कहला रहा है। इस युग में मानव समय की गति को भी पीछे छोड़ देने को तैयार है अर्थात् उसके पास इतना समय नहीं है कि वह समाज के उन वर्गों पर ध्यान दे सके जो शारीरिक रूप से या तो पूर्णत: विकलांग हैं अथवा ऐसे रोगों से पीड़ित हैं जिनका उपचार ही नहीं है। ऐसे लोगों को जीवित रखना, वास्तव में उन्हें यातना प्रदान करना है अर्थात् ऐसे लोगों को मृत्युवरण करने का वैध अधिकार मिलना ही चाहिए। परन्तु यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर ऐसा होने लगे तो मनुष्यों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238