Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 208
________________ समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण १९५ समर्थन करते हैं। मिताक्षरी के अनुसार जो स्त्री पति का अनुगमन करती है वह तीनों कुलों को पवित्र करती है । वृद्धहारित ने सती की अत्यधिक प्रशंसा की हैं और लिखा है"जो स्त्री मृत पति का आलिंगन कर अग्नि में जल जाती है, वह पतिलोक प्राप्त करती है। सती स्त्रियों के लिए पति के मरने पर अग्नि में जल मरने के अतिरिक्त कोई अन्य धर्म नहीं हैं। जो स्त्री अपने पति को लेकर अग्नि में जलती है, वह वैष्णव पद को प्राप्त करती है, जिसे योगी ही पाते हैं।' दक्षस्मृति में सती की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सती स्वर्गलोक प्राप्त करती है। पति की मृत्यु पर जो नारी अग्नि में प्रवेश करे वह शुभाचारवाली स्वर्ग लोक में महिमा पाती है। पाराशरस्मृति" में सती की प्रशंसा इस प्रकार की गई है - स्वामी के मृत्युगत हो जाने पर जो नारी ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित रहती है वह एक सद् ब्रह्मचारी के समान ही मरने के पश्चात् स्वर्ग की प्राप्ति करती है । जिस प्रकार सर्प पकड़नेवाला सर्प को बिल से बलपूर्वक निकालता है, उसी प्रकार सती स्त्री पति का उद्धार करके उस (पति) के साथ ही आनन्दित होती है । " इस तरह से हम देखते हैं कि हिन्दू धर्मग्रन्थों में सती को लेकर विभिन्न प्रकार के मत व्यक्त किए गये हैं। एक ओर कौशिक गृह्यसूत्र, भारद्वाज गृह्यसूत्र, विष्णु धर्मसूत्र, व्यासस्मृति, बृहस्पतिस्मृति, स्मृतिचन्द्रिका तथा अपरार्क संहिता जैसे हिन्दू धर्मग्रन्थ सती प्रथा का समर्थन नहीं करते हैं वहीं दूसरी ओर मिताक्षरी, दक्षस्मृति, पाराशरस्मृति आदि हिन्दू धर्मग्रन्थ सती का स्पष्ट रूप से समर्थन करते हैं। इन ग्रन्थों के अनुसार विधवा को सती होना चाहिए है, अन्यथा वह पाप का भागी बनती है। सती का समर्थन नहीं करनेवाले ग्रन्थों पर विचार किया जाए तो उनमें स्पष्ट रूप से यह निर्देश मिलता है कि विधवा को सती नहीं होना चाहिए। पति की मृत्यु के बाद विधवा को संयम का पालन करना चहिए तथा अपने घर- -गृहस्थी की देखभाल करनी चाहिए। यह दूसरी बात है कि ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं होने की स्थिति में या संयम पालन से चूकने की स्थिति में इन ग्रन्थों में भी विधवा को सती होने का स्पष्ट या अस्पष्ट निर्देश मिलता है। इन स्पष्ट और अस्पष्ट निर्णय के आधार पर यही कहा जा सकता है कि सती होना मात्र परिस्थिति एवं समय पर निर्भर करता है। अगर विधवा को यह विश्वास है कि वह संयम और ब्रह्मचर्य की रक्षा कर सकती है तो पति की मृत्यु के बाद भी वह अपना जीवन व्यतीत कर सकती है, अन्यथा वह सती होने के लिए स्वतन्त्र है। सती प्रथा और जैनधर्म सती प्रथा के सन्दर्भ में जैन आगम साहित्य में हमें एक भी ऐसी घटना का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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