Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 216
________________ समाधिमरण एवं ऐच्छिक मृत्युवरण २०३ प्रशंसनीय वृत्ति के रूप में स्वीकार करने की परम्परा रही है। भारतीय मनीषियों ने सदैव यह उद्घोष किया है कि शीलरक्षा, धर्मरक्षा हेतु अगर अपने प्राणों का बलिदान देना पड़े तो इसे सहर्ष स्वीकार किया जा सकता है। ये बातें मात्र चिन्तन में ही नहीं मिलतीं बल्कि इसे व्यवहार रूप में भी स्वीकार किया गया है। यही कारण है कि भारतीय धर्मग्रन्थों में इस बलि की वेदी पर अपने प्राणों को न्योछावर कर देने के असंख्य उदाहरण मिल जाते हैं। जहाँ तक जौहर एवं समाधिमरण की तुलना का प्रश्न है तो दोनों को समकक्ष नहीं माना जा सकता है। लेकिन जौहर को धर्मपूर्वक देहत्याग का एक रूप अवश्य माना जा सकता है और इस रूप में यह समाधिमरण के साथ तुलनीय हो सकता है, क्योंकि अपवादिक परिस्थति में बाह्य विधियों की सहायता से प्राणान्त करने का दृष्टांत जैन ग्रन्थों में भी मिलता है और इसे समाधिमरण की साधना को खंडित करनेवाला देहत्याग नहीं माना जाता है। जौहर एवं उसकी स्वतन्त्रता सतीत्व की रक्षा के लिए सामूहिक रूप से स्त्रियों का अग्नि में स्वेच्छापूर्वक जल कर मरने का नाम जौहर है। जौहर कोई स्त्री उसी समय करती थी जब उसे यह विदित हो जाता था कि उसके राज्य या नगर के समस्त पुरुष युद्ध की बलिदेवी पर भेंट चढ़ गए हैं और अब आक्रमणकारी सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति के साथ उसका भी उपभोग करेंग। इसी प्रकार की घटना जैसलमेर राज्य में घटित हुई जब वहाँ अलाउद्दीन ने आक्रमण किया। इस आक्रमण के कारण वहाँ की २४ हजार स्त्रियों ने नवजात शिशुओं एवं वृद्धों . के साथ जौहर किया। अत: मात्र सतीत्व की रक्षा के लिए ही स्त्रियाँ जौहर करती थीं। इस दृष्टिकोण से जौहर करने के लिए समस्त स्त्रियाँ स्वतन्त्र हैं, क्योंकि सभी को अपनी पवित्रता की रक्षा करने का अधिकार है। किसी कारणवश उसे अपनी पवित्रता की रक्षा के लिए देहत्याग करना पड़े तो इसके लिए वह स्वतन्त्र है। यहाँ एक प्रश्न उठ खड़ा होता है कि मात्र स्त्रियों को ही क्यों जौहर करना चाहिए? प्रत्युत्तर में यही कहा जा सकता है कि जहाँ पुरुषों पर बलात्कार सम्भव नहीं है, वहीं स्त्रियों पर यह सम्भव है। इसी कारण स्त्रियाँ जौहर एवं सती प्रथा को अपनाती हैं। मरणदान का प्रश्न - वर्तमान समय में मरणदान एक विचारणीय प्रश्न है। मरणदान का तात्पर्य इस रूप में है कि असह्य वेदना से एवं अनिवार्य मृत्यु के कारण से ग्रस्त व्यक्ति को क्या कोई मरणदान नहीं दे सकता है? क्या मरणदान देनेवाला व्यक्ति या स्वयं मरणदान । Jain Education International For Private & Personal Use only .. www.jainelibrary.org

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