Book Title: Samadhimaran
Author(s): Rajjan Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 176
________________ १६३ समाधिमरण का व्यवहार पक्ष के मुख्यरूप से पाँच अतिचार हैं। समाधिमरण की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को इन अतिचारों से मुक्त रहना आवश्यक है। संदर्भ: is mi भगवतीसूत्र, (घासीलाल जी म०), पृ०-४३८-४४२. वही तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे सुदंसणं समणोवासयं अदूरसमंतेणं वीईवयमाणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता आसुरुत्ते रुढे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं उल्लालेमाणे-उल्लालेमाणे जेणेव सुदंसणे समणोवासए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं सुदंसणे समणोवासए मोग्गरपाणिं जक्खं एज्जमाणं पासई, पासित्ता अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अक्खुभिय अचलिए असंभंते वत्थंतेणं भूमिं पमज्जइ, पमज्जित्ता करयलपरिग्गहियं दसहणं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट एवं वयासी-अन्तकृद्दशा, (मधुकर मुनि) तृतीय अध्ययन, षष्ठ वर्ग, पृ०-१२१ नमोत्थु णं अरहंताणं जाव संपत्ताणं। नमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स आइगरस्स तित्थयरस्स जाव संपाविउकामस्स। पुव्वि पि णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए थूलए पाणाइवाए पच्चक्खाए जावज्जीवाए, थूलाए, मुसावाए, थूलाए अदिण्णादाणे सदारसंतोसे कए जावज्जीवाए, इच्छापरिमाणे कए जावज्जीवाए। तं इदाणिं पिण तस्सेव अंतियं सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, मुसावायं अदत्तादाणं मेहुणं परिग्गहं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, सव्वं कोहं जाव (माणं, मायं, लोहं, पेज्जं दोसं कलहं अब्भक्खाणं पेसुण्णं परपरिवायं अरइरई मायामोसँ) मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, जइणं एत्तो उवसग्गाओ मुच्चिस्सामि तो मे कप्पइ पारित्तए । अह णं एत्तो उवसग्गाओ न मुच्चिस्सामि 'तो मे तहा' पच्चक्खाए चेव त्ति कट्ट सागारं पडिमं पडिवज्जइ। अन्तकृद्दशा, तृतीय अध्ययन, षष्ठ वर्ग, पृ० १२१-१२२. आचारांग, शीलांक टीका, पत्रांक २८४ आचारांगसूत्र (मधुकरमुनि), पृ० २७९,ब्यावर मरणान्तेऽवश्यमहं विधिना सल्लेखना करिष्यामि। इति भावनापरिणतोऽनागतमपि पालयेदिदं शीलम्।।पुरुषार्थसिद्धयुपाय, १७६ श्रीमद् जयचन्द आश्रम, अगास, १९९६ कालेन वोपसर्गेण निश्चित्यायुः क्षयोन्मुखम्। कृत्वा यथाविधि प्रायं, तास्ता: सफलयेत् क्रियाः।। धर्मामृत (सागार), ८/९, देहादिवैकृतैः सम्यङ् निमित्तैस्तु सुनिश्चिते। मृत्युवाराधानामग्न मते दुर्र न तत्पदम् । वही, ८/१०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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