Book Title: Saddharm Mandanam
Author(s): Jawaharlal Maharaj
Publisher: Tansukhdas Fusraj Duggad

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Page 3
________________ ओ३म् प्रस्तावना। यस्य ज्ञान मनंत वस्तुविषयं य: पूज्यते दैवतै नित्यं यस्य वचो न दुर्नय कृतैः कोलाहलैलु प्यते रागद्वेषमुखहिषाञ्च परिषत् क्षिप्ता क्षणायन सा सश्रीवीरविभु विधूतकलुषां बुद्धिं विधत्तां मम ? जिसका ज्ञान अनंत वस्तुओंको विषय करता है, देवता जिसकी पूजा करते हैं, जिसका वचन दुर्नयकृत कोलाहलोंसे लुप्त नहीं होता, और जिसने रागद्वेष प्रमुख शत्रुसमूहको क्षणभरमें भगा दिया था वह श्री वीर प्रभु हमारी बुद्धिको निर्मल करें। प्रिय वाचकवृन्द ! इस संसारमें धर्मके समान दूसरा कोई श्रेष्ठ और उपकारक वस्तु नहीं है। धर्म ही प्राणियोंको विपत्तिमें सहायता देने वाला सचा मित्र है । सांसारिक सभी पदार्थ शरीर के साथ ही इस लोकमें रह जाते हैं पर धर्म परलोकमें भी जीवके साथ जाता है और विपत्तिसे हटा कर जीवको सुख शांति देता है । जैसे कि कहा है धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे भा• गृह द्वारि जनाः श्मशाने । देहश्चितायां परलोक मागें धर्मानुगो गच्छति जीव एकः" ___अर्थात् धन पृथिवी पर, पशु गोष्ठमें स्त्री, घरके द्वार पर और वन्धु वान्धव श्मशानमें, देह चिता पर रह जाते हैं पर एक धर्म इस जीव के साथ परलोक में भी जाता है । अतः जो मनुष्य धर्मका संग्रह नहीं करता उसको पशुकी उपमा दी गयी है। क्योंकि पशु और मनुष्योंमें यही अन्तर है कि पशु धर्मका संग्रह नहीं कर सकता और मनुष्य कर सकता है। बड़े बड़े ऋषि महर्षियोंने मनुष्योंके कल्याणार्थ धर्माचरण करनेका उपदेश किया है और धर्मकी बड़ी विशद व्याख्या की है। शास्त्र धर्मकी व्याख्या मात्र हैं। जैसे वस्त्र तन्तुमय और घट मृण्मय होता है उसी तरह शास्त्र भी धर्ममय हैं। शास्त्रोंमें अनेक प्रकार के धर्म बतलाए हैं पर सब धर्मोमें श्रेष्ठ और सबका मूलभूत धर्म जीवरक्षा रूप धर्म कहा गया है। जैनागमका तो इसीके लिये निर्माण ही हुमा है। प्रश्न व्याकरण सूत्रके प्रथम संवर द्वारमें लिखा है कि "सव अग जीव रक्खण दयठ्याए पावयणं भवया सुकहिय" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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