Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056 Author(s): Shreechand Surana Publisher: Diwakar Prakashan View full book textPage 8
________________ दुष्टता में यमराजका राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण व्यापारियों ने आपस में सलाह की- चलो, दूरसेहीइसे हाथ जोड़ो। भगवान की कृपा समझो, पहले ही पता चल गया। भाई है वहा ग्वाला बोला हमारा नाम मत बताना, वर्ना हमें ही शूली पर चढ़ा देगा वहा । तुम चुपचाप उत्तर दिशा की तरफ मुड जाओ। राजा प्रदेशी के अत्याचारों से नगर में रहने वाला छोटा-बड़ा हर मनुष्य इस प्रकार डरा-सहमारहता था, जैसे छुरीके नीचेगर्दन कियेखड़ा कोई बकरा। एक बारप्रदेशीराजा ने सोचा- राजा ने अपने मंत्री चित्त को बुलायामुझे अपने नगर की कि चित्त! हमने सुना है, /हाँ महाराज! समृद्धि बढ़ानी चाहिए। पडोसी पड़ोसी राज्य श्रावस्ती में आपने ठीक राज्यों के साथ मैत्री सम्बन्ध भी बहुत व्यापार होता है। पारहाताह सुना है। बनाने चाहिए, नहीं तो यह देश राजा को प्रजा से करों के उजड़ जायेगा। रूप में इतना धन मिलता है कि उसके खजाने सदा भरे ही रहते हैं। L ocation intematon niwalter Personal use only manoranyogPage Navigation
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