Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 30
________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण वह चुपचाप उठकर पौषधशाला में आ गया। स्थिर होकर लेट गयाकिसी पर क्रोध करना व्यर्थ है। अपने किये पापकर्म ही दुःख देते हैं। मेरे अशुभ कर्मों के कारण ही रानी की ऐसी दुर्मति हुई होगी। वह तो निमित्त मात्र है। अशुभ कर्मों का कर्त्ता तो मैं ही हूँ । | इस प्रकार अत्यन्त समताभाव के साथ राजा ने उस भयंकर पीड़ा को सहन किया। विष-से शरीर जल रहा था, | परन्तु मन में जैसे अमृत बरस रहा था। राजा को गुरु केशीकुमार का अमर वाक्य स्मरण हो रहा था xxxxx शरीर नाशवान है, आत्मा अमर है, विषमता विष है, समता अमृत है। m Jain Education International h гал कुछ समय बाद राजा के प्राण निकल गये। 28 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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