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हंसो मत ! समझो..
राज प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण
अक्ल बड़ी या भैंस ?
भैंस बड़ी है अक्ल से भैंस खिलाती माल । अक्ल खिलाती चनपटे, करती बुरे हवाल ।।
अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा- -"अकल बड़ी है या भैंस ?"
"भैंस ।”
"कैसे?"
लड़के ने कहा- "भैंस तो हमें दूध पिलाती है, दही खिलाती है और मक्खन खिलाती है और अक्ल केवल चनपटे खिलाती है । "
आश्चर्य से अध्यापक ने कहा- "यह कैसे ?"
"ऐसे सर ! पिताजी की किसी बात का जवाब मैं देता हूँ, तब वे दो थप्पड़ मार देते हैं और कहते हैं-'आजकल तुझ में अक्ल ज्यादा आ गई है।' यही आप करते हैं और यही मेरी माँ । तब आप ही सोचिये अक्ल बड़ी है या भैंस । "
भोले (मूर्ख) छात्र का समाधान सुनकर अध्यापक मुस्करा कर चुप हो गए।
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त्यागी : महात्यागी
तुच्छ त्याग मैंने किया, छोड़ा तब निस्सार ।
नाशवान धन हेतु यह, छोड़ रहा है सार ।।
किसी नगर एक बहुत पहुँचे हुए त्यागी महात्मा आए । नगर की जनता ने सत्संग का लाभ लिया। पर एक सेठ जो अच्छा धनाढ्य था, वह कभी नहीं आया। योगी ने जब उसके न आने का कारण पूछा, तब किसी ने बताया कि वह तो अपने धन के नशे में बावला हो रहा है। फिर भी एक दिन ऐसा प्रसंग आया कि सेठ योगी की सत्संग-सभा में चला ही आया। ज्यों ही सेठजी ने आकर मुनि को नमस्कार किया, त्यों ही मुनिजी भी खड़े हो गये और सेठ को नमस्कार किया ! दर्शक सब आश्चर्य में थे। ऐसा करने का कारण पूछा, तब योगी बोले
"यह महात्यागी है, क्योंकि मैंने तो नाशवान धन और परिवार को ही छोड़ा है और इस सेठ ने तो नाशवान धन के पीछे अविनश्वर आत्म-सुखों को ही छोड़ रखा है। इसलिए ये बड़े त्यागी हैं। तभी मैंने इन्हें नमस्कार किया है।"
तपस्वी के व्यंग्य - वाक्यों ने सेठ की आँखें खोल दी। वह योगी के चरणों में गिर पड़ा।
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