Book Title: Raja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Author(s): Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिवाकर चित्रकथा राजा प्रदेथीभर प्राकृत और जयपुर || कशाकुमार श्रमण बना। भारती अंक ५६ मूल्य २०.०० अकादमी GOODO (GO CEO सुसंस्कार निर्माण तित्तार शुद्धि : ज्ञान वृद्धि Ey मनोरंजन Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण कहा जाता है पारस का स्पर्श पाकर लोहा सोना बन जाता है और अमृत के पान से विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है, किन्तु आज तक हमने न तो पारस देखा, न ही अमृत का दर्शन किया । किन्तु यह तो अनुभव का सच है कि सत्संग का प्रभाव इनसे भी अधिक चमत्कारी होता है। सत्संग से मनुष्य का जीवन बदल जाता है। विचार शुद्ध हो जाते हैं। पापात्मा महात्मा बन जाता है। दुर्जन सज्जन बन जाते हैं। क्रूर, निर्दय हत्यारा करुणा का अवतार बन जाता है । क्रोधी राक्षस से क्षमा का देवता बन जाता है। I रायपसेणिय नामक जैन सूत्र में भगवान महावीर ने प्रदेशी राजा और केशीकुमार श्रमण का ऐतिहासिक उदाहरण देकर बताया है, प्रदेशी जैसा नास्तिक, धर्म विरोधी और हिंसा आदि पापों में लीन रहने वाला और छोटे से अपराध पर भी मृत्यु दण्ड देने वाला व्यक्ति एकदम परम आस्तिक, धार्मिक, करुणा और क्षमा का अवतार बन गया कि रानी ने भोजन में जहर मिलाकर खिला दिया और राजा को पता चल गया तब भी वह शांत और क्षमाशील बना रहा। न रानी पर द्वेष किया, न ही मन में दुःखी हुआ । यह परिवर्तन कैसे हुआ ? उत्तर है सत्संग के प्रभाव से । हमने यहाँ केवल प्रदेशी राजा का चरित्र ही लिया है। एक बार भगवान महावीर के सामने सूर्याभ देवता स्वर्ग से आकर वन्दना करता है और अपनी दिव्य देव ऋद्धि का प्रदर्शन करता है । तब गौतम स्वामी पूछते हैं- "इस देव ने इतनी दिव्य ऋद्धि कैसे प्राप्त की ? इसने पूर्व जन्म में क्या-क्या धर्म कार्य किये थे ?" उत्तर में भगवान महावीर सूर्याभ देवता के पूर्व जन्म की कथा सुनाते हैं कि यह पहले प्रदेशी नाम का राजा था। इस प्रकार इसके जीवन में यह परिवर्तन आया है। -महोपाध्याय विनय सागर सम्पादक : श्रीचन्द सुराना 'सरस' प्रकाशन प्रबंधक : संजय सुराना प्रकाशक L श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282002. दूरभाष : 0562-2151165 सचिव, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर 13- ए, मेन मालवीय नगर, जयपुर-302017. दूरभाष : 2524828, 2561876, 2524827 अध्यक्ष, श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर (राज.) श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन सभा 18/D, सुकेस लेन, कलकत्ता - 700001. दूरभाष : 22426369, 22424958 फैक्स: 22104139 - श्रीचन्द सुराना 'सरस' चित्रांकन : श्यामल मित्र Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण | वहाँ पधारे। नगर के बाहर हजारों आम के वृक्षों वाला 'आमशाल वन' (बगीचा) था। वहीं पर भगवान का | समवसरण लगा। नगर का 'संघ' राजा-रानी और हजारों नागरिक आकर भगवान की देशना सुनने लगे। Algiers ovate omani जो व्यक्ति धर्म की आराधना करता है, उसके जीवन का प्रत्येक क्षण सफल होता है..... TARI प्राचीनकाल में आमलकप्पा नामक सुन्दर नगरी थी। विहार करते हुए भगवान महावीर TA 110 उसी समय सौधर्म नामक स्वर्ग के सूर्याभ विमान में सूर्याभदेव अपनी सुधर्मा सभा में बैठा अप्सराओं का नृत्यगायन का आनन्द ले रहा था। वाह ! DOO.or www 00000 कितना सुन्दर नृत्य है। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण अचानक उसका ध्यान भरतक्षेत्र की तरफ गया। उसने आमशाल वन में समवसरण में विराजमान भगवान महावीर को देखा। सूर्याभदेव का हृदय भक्ति रस सेगद्गद् हो गया। उसने तुरन्त सिंहासन से उतरकर भगवान को वन्दना की हे धर्म की अति करने वाले लोक पूज्य प्रभु मैं आपको वन्दना करता हूँ। आप तो सर्वज्ञ हैं, वहाँ । रहे आप मुझे यहाँ देख रहे हैं। OYAVOYAYOOD OYSTY5 Commons पुनः सिंहासन पर बैठकर सूर्याभ देव ने अपने आभियोगिकदेवोंसेकहाहम पृथ्वी पर आमलकप्पा नगरी में विराजमान श्रमण भगवान महावीर के दर्शन करने जायेंगे। तैयारी करो। orno Elin Education International Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवों ने तुरन्त विमान सजाया भन्ते ! क्या मैं भव्य हूँ ? मोक्ष प्राप्त करने योग्य हूँ या नहीं ? राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण धर्म देशना सुनने के पश्चात् सूर्याभदेव ने प्रभु से पूछा'देव! तुमने पूर्व जन्म में धर्म की सम्यक् आराधना की है। आगामी जन्म में भी तुम धर्म की सम्यक्, आराधना करोगे। स्वामी! भगवान महावीर के दर्शन हेतु पृथ्वी पर जाने के लिए विमान • तैयार है। TOU 286UW विमान में बैठकर अपने देव परिवार के साथ सूर्याभदेव भगवान महावीर की धर्म सभा में आया। अत्यन्त भक्ति भाव के साथ उसने भगवान महावीर को वन्दना कर अपना परिचय दियाप्रभो ! मैं सूर्याभदेव आपको वन्दना करता हूँ। (2) UUK फिर वह यथा स्थान बैठ गया। कहा सूर्याभदेव अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने तीन बार प्रदक्षिणा कर वन्दना की। फिर उसने भगवान से प्रभो! जिस धर्म-साधना के फलस्वरूप मैंने यह दिव्य ऋद्धि प्राप्त की है.. उसका कुछ प्रदर्शन यहाँ करना चाहता हूँ। VOUC प्रभु मौन रहे। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण सूर्याभदेव ने अपने देवों को संकेत किया। सर्वप्रथम सभी ने प्रभु को वन्दना की। फिर अष्ट मंगल आकृति | बनाकरमोहकनत्य आदि किये। वाह ! ऐसा வவவவன் अद्भुत नाटक हमने पहले कभी नहीं देखा। NAVAYAVA TO HAMPA ONIOவலம் NADA S HTRODE DA अनेक प्रकार के दिव्य नाटक आदि दिखाकर सूर्याभदेव वापस स्वर्ग को चला गया। देव के जाने के बाद गणधर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा भन्ते ! यह देव गौतम ! इस देव कौन था? किस धर्म-साधना के पूर्वजन्म की कथा के फलस्वरूप उसने यह दिव्य बड़ी विस्मयकारी है। ऋद्धि प्राप्त की है। मैं तुम्हें बताता हूँ। ध्यान से सुनो। Jain Education international Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण बहुत प्राचीनकाल की बात है सेयविया (श्वेताम्बिका) नगरी में प्रदेशी नाम काराजा था। वहराजा धर्म का विरोधी, हिंसा आदि क्रूरकर्म करने वाला था। राजा कीरानी का नाम सूर्यकान्ता और पुत्र का नाम सूर्यकान्त था। चित्त नामक राजा का प्रधानमंत्री बड़ा धार्मिक, दयालु, चतुर और नीतिनिष्ठ होने केसाथहीराजाका बचपन का मित्र भीथा। इसने कर नहीं महाराज! इसे दिया। इसको क्षमा कर दें। अगले और मारो! वर्ष इससे पूरा कर वसूल लेंगे। POORULE a BORATNIG2424XANAXX - 9999 090 09099999999999 200000 OOOO एक बार व्यापारियों का एक काफिला सेयविया नगरी के पास से निकला। नगर वालों ने हँसकर कहाके पास आने पर एक बूढ़े व्यापारी ने गाय चराने वाले ग्वालों से पूछा हे! ऐसा दुष्ट भाई! हम बहुत दूर से अपने जान-माल से दुश्मनी है । हैवह? व्यापार करने आये हैं।।। क्या? तुमको पता नहीं, यहाँ का यह नगर कौन-सा है?| राजा बडा अत्याचारी, पापी और लुटेरा। यहाँ का राजा कौन है? | है। उसके हाथ की तलवार हर समय खून से रंगी रहती है। आदमी को मारना तो उसके लिए खेल है। Personas 5 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुष्टता में यमराजका राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण व्यापारियों ने आपस में सलाह की- चलो, दूरसेहीइसे हाथ जोड़ो। भगवान की कृपा समझो, पहले ही पता चल गया। भाई है वहा ग्वाला बोला हमारा नाम मत बताना, वर्ना हमें ही शूली पर चढ़ा देगा वहा । तुम चुपचाप उत्तर दिशा की तरफ मुड जाओ। राजा प्रदेशी के अत्याचारों से नगर में रहने वाला छोटा-बड़ा हर मनुष्य इस प्रकार डरा-सहमारहता था, जैसे छुरीके नीचेगर्दन कियेखड़ा कोई बकरा। एक बारप्रदेशीराजा ने सोचा- राजा ने अपने मंत्री चित्त को बुलायामुझे अपने नगर की कि चित्त! हमने सुना है, /हाँ महाराज! समृद्धि बढ़ानी चाहिए। पडोसी पड़ोसी राज्य श्रावस्ती में आपने ठीक राज्यों के साथ मैत्री सम्बन्ध भी बहुत व्यापार होता है। पारहाताह सुना है। बनाने चाहिए, नहीं तो यह देश राजा को प्रजा से करों के उजड़ जायेगा। रूप में इतना धन मिलता है कि उसके खजाने सदा भरे ही रहते हैं। L ocation intematon niwalter Personal use only manoranyog Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किन्तु अपने राज्य का तो व्यापार-धंधा सब चौपट हो रहा है। जितना कर (टैक्स) वसूल होता है, उससे तो सेना का खर्चा ही पूरा नहीं चलता ? राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण फिर कुछ देर सोचकर बोला श्रावस्ती पहुँचकर मंत्री वहाँ के राजा जितशत्रु के दरबार में पहुँचा HIN महाराज की जय हो ! मैं सेयविया का मंत्री चित्त आपका अभिनन्दन करता हूँ। महाराज ! हमारे राजा की तरफ से ये भेंट स्वीकार कीजिये। दूसरे ही दिन मंत्री चित्त श्रावस्ती के राजा को भेंट के लिए सुन्दर कीमती वस्त्र, आभूषण और तरह-तरह के | फल-मिष्टान्न आदि सामान रथों में भरकर चल दिया प्रति आइये मंत्री जी! आपका स्वागत है। तुम श्रावस्ती में जाओ ! वहाँ के राजा के साथ अपना व्यापार और मैत्री-सम्बन्ध बढ़ाने की बात करो। राज्य की सुख-समृद्धि का रहस्य पता लगाओ। KYYY ठीक है महाराज ! मैं कल ही श्रावस्ती जाऊँगा। CON मंत्री को उद्यान के बीच बने राजकीय अतिथि भवन में ठहरा दिया गया। For Private Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण दूसरे दिन प्रातःकाल मंत्री ने देखा नगर के सैकड़ों मंत्री ने चौकीदार को बुलाकर पूछा तो चौकीदार ने स्त्री-पुरुष सुन्दर वस्त्र-आभूषण पहने कहीं जा रहे| बताया मंत्री जी! आज नगर में भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशीकुमार श्रमण पधारे हैं। ये श्रमण बड़े ज्ञानी, तपस्वी और प्रभावशाली हैं। सभी नगरजन उनके पावन दर्शन करने और उपदेश सुनने के लिए जा रहे हैं। आज ये सब लोग एक ही दिशा में क्यों जा रहे हैं? क्या कोई मेला है, महोत्सव है? मंत्री ने प्रसन्न होकर सोचा मुनि जनता को धर्मोपदेश देते हैंकितना सुन्दर मौका है, . भव्य जनो! मनुष्य जीवन आज तो बिना बादल ही वर्षा | | पाने का सार यह है कि मनुष्य हो गई। मैं भी ऐसे महान भोग की जगह त्याग को, स्वार्थ संत के दर्शन करने की जगह सेवा को और संग्रह जाऊँगा। की जगह दान को अपनायें। ood स्नान आदि करके मंत्री प्रवचन सुनने बगीचे की तरफ चल दिया। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण उपदेश सुनने के बाद चित्त मंत्री मुनि के पास आकर बोलागुरुदेव! आपका १ भद्र ! जिसमें तुम्हारी उपदेश मुझे बहुत अच्छा आत्मा का कल्याण हो लगा। मैं भी श्रावक धर्म वैसा कार्य शीघ्र करो। स्वीकारना चाहता हूँ। मंत्री ने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया। अब वह प्रतिदिन श्रमण केशीकमार के उपदेश सुनने जाता। चित्त मंत्री कई दिनों तक श्रावस्तीरुका। उसने वहाँकेराजा केसाथ अनेक प्रकार की संधियाँ की। एक दिन उसने राजा से कहा महाराज! अब ठीक है मंत्रीजी, कल मैं अपने हमारी तरफसेआपके राज्य को लौटना महाराज को मैत्री चाहता हूँ। का सन्देश देना। HAOn राजा ने मंत्री को अनेक सुन्दर उपहार आदि दिये। विदा लेकर मंत्री रथ में सवार होकर सीधा बगीचे में । मुनि मंत्री की तरफ देखकर मुस्कराये। मंत्री ने दुबारा। केशी श्रमण के पास आया कहा- महामुने! क्या गुरुदेव! मैं अपना कार्य करके Erroman मेरी प्रार्थना वापस अपने राज्य को जा रहा हूँ। स्वीकार होगी? गुरुदेव ! सेयविया नगरी बहुत सुन्दर है। कभी आप भी वहाँ पधारने की कृपा करें। बहुत बड़ा उपकार होगा। cation International For Private Personal Use Only www.jalgelibrary.org Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तब केशी श्रमण बोलेमंत्री, एक बात बताओ! एक बहुत सुन्दर बगीचा है, उसमें तरह-तरह के फल-फूल वाले छायादार वृक्ष लगे हैं। वहाँ पर पशु-पक्षी आना चाहते हैं या नहीं? राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण समझो, उस बगीचे में एक शिकारी हाथ में नहीं ! जहाँ धनुष तीर लेकर छुपा बैठा साक्षात् मौत है तो क्या वहाँ पर कोई नाच रही हो, वहाँ पशु-पक्षी आयेंगे? कौन आयेगा? क्यों नहीं। जरूर वहाँ आकर विश्राम करना चाहेंगे। तो मंत्री! तुम्हारी सेयविया नगरी बगीचे के समान है, किन्तु तुम्हारा अत्याचारी और अधर्मी राजा शिकारी के समान वहाँ बैठा है तो संत पुरुष, धर्म मुनि कैसे आयेंगे?/ गुरुदेव!आप एक बार दर्शन तो देवें। मुझे लगता है सत्संग से अधर्मी राजा भी सुधर कुछ दिन बाद चित्त मंत्री बगीचे में बैठा था तभी चौकीदारों ने आकर सूचना दी मंत्रिवर!आप जिन महाश्रमण के आने की बहुत सुन्दर! मैं प्रतीक्षा कर रहे थे, वे | शीघ्र ही उनके दर्शन केशीकुमार श्रमण हमारे बगीचे में पधारगये हैं। के लिये आ रहा हूँ। जायेगा। | मंत्री ने बहुत अनुनय-विनय करके मुनि को मना लिया। मंत्री चौकीदारों को इनाम देकर वापस भेज देता है। lain Education International For Private Cersonal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण |चित्त मंत्री ने राजा प्रदेशीको केशीकुमार श्रमण के दर्शन के लिये ले जाने की एक योजना बनाई। वह अगले दिन सुबह चारघोड़ोंवालाएकरथलेकरराजमहलों केसामने पहुँचा।राजा केपासजाकर बोला महाराज! कबोज वाह! तो चलो। सेजो चार घोड़े भेंट आज इनकी सवारी आये थे, उनको करके परिक्षा प्रशिक्षित कर दिया लीजायो है। अब वे परीक्षण के लिए तैयार हैं। COLORRIT inoxfe तैयार होकर राजा रथ में सवार हो गया। चित्त मंत्री सारथी की जगह बैठकर घोड़ों को दौड़ाने लगा। मंत्री घोड़ों को तेजगति से दौड़ाता हुआ दूर बहुत दूर ले गया। राजा बोला महाराज! यह सामने चित्त! इतनी ( पाindi ही हमारा मगवन उद्यान तेज धूप में मैं तो है। वहाँ चलकर आप पसीना-पसीना हो गया हूँ। विश्राम कीजिए। भूख-प्यास भी सता रही है। अब कहीं विश्राम करो जरा छायादार बगीचा देखो। राजा को लेकर चित्त मंत्री उद्यान में आ गया। राजा विश्राम करने लगा। तभी उसने देखा पास ही मुनि केशी श्रमण धर्म-प्रवचन कर रहे हैं। सामने सैकड़ों स्त्री-पुरुष बैठे उनका प्रवचन सुन रहे हैं। चित्त ! ये मूर्ख व्यक्ति कौन है? जोर-जोर से क्या कह रहा है और हमारे बगीचे में क्या कर रहा है? राजन् ! ये भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य AAJANATANP केशीकुमार श्रमण हैं। बड़े ज्ञानी हैं। इनका मानना है शरीर और जीव दोनों एक नहीं अलग-अलग हैं। DA ७४-900AS Education International Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अच्छा! हमारे विचारों के विरोधी हैं। तब तो चलो, इनसे बहस करने में मजा आयेगा। # WHE "De Fons राजा ने चौंककर कहा Bevowe यह आप क्या कह रहे हैं ? इन्डीहर हैं! मेरी लुप्त बात आपने कैसे जानी ? क्या आप ज्ञानी हैं ? तुमने वहाँ वृक्ष के नीचे खड़े होकर हमें मूर्ख लोग (जड - मूढ़) बताया ? Sahy राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण चित्त को साथ लेकर राजा मुनि के पास आता है Hawa Wy 20 Pho aura मुनि ! क्या आप सचमुच ज्ञानी हैं शरीर और जीव को अलग-अलग मानते हैं ? 14 मैंने अपने मनोज्ञान (मनः पर्यव ज्ञान) से तुम्हारे वे विचार जाने हैं। # राजा प्रदेशी का यह मानना था कि आत्मा का अलग से कोई अस्तित्त्व नहीं होता। प्रदेशी ! तुम राजा होकर सामान्य शिष्टाचार नहीं जानते। अच्छा! मैं आपसे चर्चा करना चाहता हैं। क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ ? wowwh 12 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आज्ञा लेकर राजा बैठ जाता है। फिर पूछता है मुनि जी ! क्या आप यह मानते हैं जीव और शरीर दोनों अलग-अलग हैं ? MMM Birch राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण राजन् ! हम ऐसा मानते ही नहीं, ऐसा ही है। शरीर का नाश होने पर भी जीव का नाश नहीं होता। आत्मा तो अमर है। अगर आत्मा अमर है तो बताइए मेरे दादा जो मेरे जैसे ही हिंसा प्रेमी थे, आपके शास्त्र अनुसार वे मरकर नरक में गये होंगे। परन्तु उन्होंने आज तक मुझे आकर नहीं कहा कि वत्स, मैंने हिंसा का यह दुष्फल पाया है। तू हिंसा मत करना। अगर कह देते तो मैं आपका सिद्धान्त सत्य मान लेता। नहीं ! ऐसे अपराधी को नहीं छोड़ सकता। 100 राजन् ! सोचो, तुम्हारा कोई घोर अपराधी है। बड़ी मुश्किल से पकड़ में आया है। तुमने उसे मृत्युदण्ड दिया हो, वह कहे कि मुझे कुछ देर के लिए छोड़ दो, मैं अपने परिवार में जाकर कह दूँ कि तुम कोई ऐसा अपराध मत करना, तो क्या तुम उसे छोड़ दोगे ? पापात्मा नरक में जाता है, वहाँ पर परमाधार्मिक | देव (यमदूत) उनको पकड़कर अति घोर यातनाएँ देते हैं। वे उनको एक क्षण के लिए भी कहीं जाने नहीं देते। 13 हाँ! हिंसा करने वाले तो नरक में ही जाते हैं। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण मुनिवर! मैंने एक मैंने एक चोर को मृत्युदण्ड प्रयोग द्वारा सिद्ध कर दिया दिया। लोहे की सीलबन्द कुंभी में कि शरीर के अन्दर आत्मा उसे जीवित ही बन्द करके ऊपर से नाम की कोई वस्तु मिट्री का लेप करवाकर उसे, नहीं होती है। हवाबन्द कर दिया। आपने क्या प्रयोग किया? राजन् ! CGALAN कुछ दिन बाद मैंने उस कुंभी को खुलवाया, तो वह चोर मरा हुआ मिला। परन्तु उस कुंभी में कहीं भी कोई छेद नहीं हुआ। बताइये जीव कहाँ से निकला? इससे यही सिद्ध होता है कि शरीर नष्ट होते ही जीव नष्ट हो जाता है। दोनों एक ही हैं। Dhan U OUOVU राजन् ! एक कूटाकार शप्ला है। उसका एक ही दरवाजा है। उसमें कोई पुरुष नगाडा लेकर घुस गया। बाहर से चारों तरफ से हवाबन्द छिद्र रहित कर दिया गया। भीतर बैठा वह नगाड़ा बजाता है तो उसकी आवाज बाहर सुनाई देती है या नहीं? OOOUUOOL Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुनाई देती है। राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण जब शब्द जैसी भौतिक वस्तु ।। चलो, माना कि जीव भी छिद्र रहित स्थान से निकल | छिद्र रहित स्थान से भी सकती है और दिखाई नहीं पड़ती निकल सकता है परन्तु तो जीव जैसी अभौतिक वस्तु को दिखाई तो देना चाहिए। निकलने में क्या दिक्कत है ? ose फिर अपना अनुभव बताया इसके अन्दर तो कोई जीव नहीं है। मैंने एक बार एक अपराधी को । मृत्युदण्ड दिया। उसके शरीर के टुकड़ेटुकड़े करके देखा कि उसकी आत्मा या जीव नाम की वस्तु कहाँ है, परन्तु मुझे तो वह दिखाई नहीं दी। मुनि मुस्कराये राजन् ! तुम तो उन लकड़हारों जैसी मूर्खता की बात करते हो। कौन लकड़हारे? क्या मूर्खता की उन्होंने ? 15 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण कुछ लकड़हारे जंगल में गये। खाना पकाने के लिए आग साथ ले गये थे, परन्तु वह बुझगई। तब एक बुजुर्ग ने कहा अरणी की लकड़ी से आग निकाल लेना। VitutONARMimite (फिर क्या हुआ? बुजुर्ग चला गया। पीछे से लकड़हारे ने खाना पकाने के लिए अरणी लकड़ी के टुकड़े किये, परन्तु आग नहीं मिली। उसने छोटे-छोटे टुकड़े करके खूब देखा, परन्तु उसमें आग कहीं नहीं मिली। अरे! इसमें तो आग है ही नहीं। कितने टुकड़े कर डाले फिर भी आग नहीं निकली। तभी बुजूर्ग आया। उसने कहा-लायो । मझे दो। तुम झूठे हो, अरणी में तो आग है ही नहीं। देखो, मैंने कितने टुकड़े कर डाले। बुजुर्ग ने अरणी लकड़ी लेकर जोर से घर्षण किया, तो उसमें से आग की चिनगारियाँ फटने लगी। आग मिल गई। देखो आग वाह! निकल गई Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण उसी प्रकार शरीर में आत्मा रहता है। उसका दर्शन करने के लिए ध्यान, तप, मनन रूपी घर्षण करना पड़ता है। तभी आत्मा रूपी ज्योति का दर्शन होता है। Tra कुछ देर तक राजा सोचता रहा। फिर बोला आप कहते हैं कि चेतना के कारण ही हम सब घूम-फिर रहे हैं। तो क्या आप मुझे उस चेतना को हाथ पर लेकर दिखा सकते हैं ? Moha son 4. Aul. (Apr 24 2750 राजा बहुत देर तक तर्क-वितर्क करता रहा। अन्त में उसे केशीकुमार श्रमण की बात सच लगने लगी। उसने सोचा मेरी मान्यता गलत है, मुनि जी का कहना सच है। शरीर तो भौतिक वस्तुओं से बना है। आत्मा चैतन्य स्वरूप है। जैसे दीपक में ज्योति रहती है, उसी प्रकार शरीर में आत्मा रहता है। दीपक से ज्योति भिन्न है, उसी तरह शरीर से आत्मा को भिन्न समझो। राजन्! तुम्हारे सिर पर यह वृक्ष है। इसकी पत्तियाँ क्यों हिल रही हैं, कौन हिला रहा है इन्हें ? 17 Mha S July-1 Ma Su Thank M میں यह तो हवा के कारण हिल रही हैं। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण नहीं! हवा तो कभी पकड़ में नहीं आ सकती। राजन् ! हवा तो रूपी द्रव्य है, जब वही पकड़ में नहीं आ सकती तो अरूपी आत्मा को पकड़कर कैसे बताया जा सकता है? तो क्या तुम इस हवा को पकड़कर मुझे दिखा सकते हो? प्रदेशीराजा ने फिर पूछा अच्छा महाराज! आपकहते हैं हाथी में और चींटी में एक समान ही आत्मा होती है। हाँ राजन्! आत्मा का प्रकाश सभी में समान है। क्या चींटी में नहीं चींटी से हाथी हाथी के समान ही बल अधिक शक्तिशाली और शक्ति है? होता है। तो फिर दोनों की आत्मा समान कैसे हो सकती है ?) For Privat 1&ersonal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण राजन् ! एक आदमी हाथ में एक जलता हुआ दीपक लेकर एक छोटी बन्द कोठरी में प्रवेश करता है तो उसका प्रकाश कितनी दूरी में फैलेगा? उस कोठरी तक ही सीमित रहेगा। अब उस आदमी ने दीपक के ऊपर एक लोहे का बड़ा ढक्कन लगा दिया, तो वह प्रकाश कितनी दूर तक सीमित रहा? अब तो केवल उस ढक्कन के भीतर ही प्रकाश रहेगा। बाहर अंधेरा होगा। 15 For Private Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा ने मुनि से कहा परन्तु मुनिवर ! मेरे दादा भी शरीर और आत्मा को एक ही मानकर सदा। हिंसा आदि कर्म करते रहो संसार के मौज शौक में मस्त रहे तो मैं | अपने पुरखों का धर्म कैसे छोड़ दूँ ? Munge राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण राजन ! इसी प्रकार आत्मा रूपी दीपक का प्रकाश, जितना क्षेत्र मिलता है उतने में ही कभी विस्तृत होता है, कभी सिमट जाता है। राजन् ! झूठी जिद्द की पूँछ पकड़ने वाला बाद में पछताता है। तुम्हें भी उस लोह बणिक् की तरह बाद में 'पछताना पड़ेगा। S Gu आपका मतलब है, प्रकाश तो वही है, परन्तु क्षेत्र के कारण छोटा बड़ा हो जाता है। हाँ राजन! तुमने ठीक समझा है। आत्मा की चेतना में अन्तर नहीं है, परन्तु प्राणी जैसा शरीर धारण करेगा, उतने ही क्षेत्र में वह सीमित हो जायेगा। 20 राजन ! मैं तुम्हें लोह बणिक् की कथा बताता हूँ। ध्यान से सुनो चलो हम लोहे की गठरिया बाँध लेते हैं। आगे शहर में जाकर बेचेंगे तो कुछ तो पल्ले पड़ेगा। चार बणिक् व्यापार । के लिए दूसरे नगर । की तरफ गये। रास्ते में उन्हें लोहे की खानें दिखाई दीं। तब एक व्यक्ति बोला Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण चारों ने ही लोहे की पोटलियाँ बाँध लीं और आगे चले। कुछ उसके साथियों ने ताँबे की पोटलियाँ बाँध लीं। किन्तु एक | दूर जाने पर ताँबे की खान मिली। तब उन्होंने सलाह की- | साथी बड़ा अड़ियल था। वह बोला- मैं अपने विचार बार-बार नहीं बदलता। जो एक बार ले लिया सो ले लिया। राजन् ! तुम बताओ किसकी बात उचित थी ? लोहा फेंककर हमें ताँबा ले लेना चाहिए। 2030 आगे चलने पर चाँदी और सोने की खान मिली। तीन चौथा साथी बोलासाथियों ने ताँबा फेंककर सोने की गठरियाँ बाँध लीं। चौथे से कहाभाई ! अब तो लोहा छोड़कर सोना बाँध लो। एक ही बार में दरिद्रता मिट जायेगी। 2wx तीनों का कहना उचित था। चौथा बिलकुल मूर्ख था। सोना मिलने पर लोहा लिये चलना सरासर मूर्खता है न ? Nwe facer Ww osrun 21 तुम सब मिट्टी के माधो हो। बार-बार बदलते रहते हो। मैं अपने विचारों का पक्का हूँ। जो ले लिया वही लोहे की लकीर है। तो आगे जाने पर हीरों की खान मिली। तीनों ने तो सोना फेंका और हीरों की पोटली बाँध ली। परन्तु चौथा अपनी पकड़ पर अड़ा रहा। जो एक बार ले लिया सो ले लिया।उसने लोहा ही रखा। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण तीनों ने नगर में जाकर हीरे बेचे तो उनको खूब धन-वैभव मिला। वे आनन्द से जीवन बिताने लगे। चौथे ने लोहा बेचकर कुछ पैसा कमाया और फेरी लगाने का धंधा करने लगा। 0000000 एक दिन फेरीवाला घूम रहा था। एक पुराने साधी ने उसे पहचान लिया। नौकर को भेजकर अपने महल में बुलाया और पूछा तुम मुझे सेठ साहब! आप पहचानते हो? भी मुझगरीब से मजाक करते हो। कहाँ आप, कहाँ मैं, कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगु तेली। IM Inml वह सेठ हँसा मैं वही तुम्हारा साथी हूँ जिसने लोहा, चाँदी, सोना छोड़कर हीरे की पोटली बाँधी थी। मगर लाख समझाने पर भी तुमने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। 22 Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण कहानी का सार समझाते हुए आचार्यश्री ने कहा प्रदेशी ! तुम भी अपने दादा के विचारों की दुराग्रह सांकलों में जकड़े फेरीवाला आँखें फाड़-फाड़कर उसका वैभव देखने लगा और अपना सिर पीटने लगा हाय ! मैं तो बर्बाद हो गया। पर अब पछताये होत क्या............! फिर राजा ने हाथ जोड़कर निवेदन कियामुझे आपका दर्शन स्वीकार है। अब विश्वास हो गया है कि आत्मा और शरीर भिन्न हैं। पाप और पुण्य का फल आत्मा को भोगना पड़ता है। कृपया मुझे धर्म का ज्ञान दीजिए। रहोगे तो ऐसे ही पछताना न पड़े ! गुरुदेव ! मैं आपका भाव समझ गया। सत्य को समझकर मिथ्या आग्रह रखना मूर्खता है, मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूँ। | केशीकुमार श्रमण ने राजा प्रदेशी को अहिंसा, दया, सत्य, ब्रह्मचर्य, त्याग, तप आदि तत्त्वों का रहस्य | समझाया और कहाराजन् ! प्राणी जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल भुगतना ही पड़ता है। इसलिए सदा सत्कर्म करो। अच्छे कर्म अच्छे फल देने वाले हैं। www गुरुदेव ! आज से मैं आपका बताया तप-संयम का मार्ग स्वीकार करता हूँ। हिंसा को त्यागकर सबके साथ दया करुणा और प्रेम का व्यवहार Frauds करूँगा। | राजा केशी श्रमण को वन्दना करके अपने महलों में आ गया। 23 www.jainellary.org Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण दूसरे दिन उसने अपने मंत्री आदि अधिकारियों को बुलाकर फिर मंत्री से कहा कहा सेनापति ! काराबार में जितने भी बंदी हैं, सबको मुक्त कर दो। मैंने सबको क्षमा कर दिया है। लोग सुनकर आपस में बातें करने लगे यह राजा एक ही दिन में इतना कैसे बदल गया ? कल तक प्रजा का खून चूसने में मजा आता था, वह आज प्रजा के लिए सबकुछ लुटा रहा है। यह सब केशीकुमार भ्रमण का प्रभाव है। धन्य है परोपकारी संता राज्य की जितनी आय है, उसको 'चार भागों में बाँट दिया जाये। एक भाग राज्य की सुरक्षा व्यवस्था और सेना के लिए, एक भाग को प्रजा के लिए खर्च किया जाये। तीसरे भाग को राजा के परिवार और सेवकों के भरण-पोषण में खर्च किया जाये और चौथे भाग का सुरक्षित कोष बनाया जाये। जिससे गरीबों, अनाथों, तपस्वियों, ब्राह्मणों, मुनियों और साधु-श्रमणों आदि का पालन-पोषण रक्षण किया जाये। राजा ने चित्त मंत्री से कहा 24 चित्त! अब राज्य की सारी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। मैं अपने किये पापों का प्रायश्चित कर आत्मा को पवित्र बनाऊँगा । OO.DOC Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण और राजा एकान्त में अपनी पौषधशाला में जाकर रहने एक दिन उसकी रानी सूर्यकान्ता ने विचार कियालगा। उपवास आदि तपकरता। ध्यान करता और परमात्म मेरे पति तो धर्म कर्म में भक्ति में लीन रहता। जाहीर डूबकर मुझे ही भूल गये। Maa अब न तो मुझसे बात करते हैं, न ही कभी महल में आते हैं। मुझसे तो जैसे नाता ही तोड़ लिया है। रातभर विचार करते-करते उसने । योजना बनाई क्यों न राजा को मारकर अपने पुत्र को राजा बना दूं और मैं राजमाता बनकर सम्मानपूर्वक सुख भोगें। प्रातःकाल एकान्त में पुत्र से मिली वत्स्! तुम्हारे पिताजी ने तो राजधर्म से मुँह मोड़ लिया है। उन्हें न परिवार से प्रेम रहा, न ही प्रजा से। हाँ माता! उनका तो जीवन ही बदल गया है। 24 25 For Rrivate & Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वत्स! ऐसे बेकार राजा को खत्म कर तुम्हें राजभार संभाल लेना चाहिए न ? एक दिन दासी ने कहा रानी जी! कल महाराज को षष्ट तप (बेले) का पारणा है। क्या तैयारी करूँ ? राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण ना ! ना ! मात् ! ऐसी बात मुँह से कहना भी मता मैं तो कानों से सुनना भी पसन्द नहीं करता। क्या मैं पितृघात का महापाप कर डालूँ ना ना ! और वह उठकर चला गया।। यह अच्छा मौका है। मैं आज अपनी योजना पर अमल करूँगी। 26 रानी ने सोचा फिर दासी से बोली यह तो बात बिगड़ गई। मेरे षड्यंत्र की भनक राजा को लग गई तो मुझे कुत्ते की मौत मार डालेगा। और वह दिन-रात राजा को मारने की ताक में रहने लगी। तुम क्या करोगी ! मैं खुद महाराज को अपने हाथों से पारणा कराऊँगी। पति सेवा तो पत्नी का धर्म जो है। Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजाप्रदेशी औरकेशीकुमार श्रमण रानीनेसुबह उठकरअपने हाथों सेराजाकेपारणेकेलिए। मौका देखकररानी ने भोजन सामग्री में तेज भोजन आदिबनाया दासियों सेकहा जहर मिला दिया। अपने कपड़ों आदि पर भीजहर काचूर्ण छिड़कलिया। VAVAVAVAVANAVANANAVANAYANANA तुमसब जाओ! महाराज को आज मैं अब देखती हूँ इस अपने हाथों से भोजन विषके प्रभाव सेराजा कराऊँगी कैसे बचता है। राजापारणा के लिये महलों में आया। रानी ने प्रेम और भक्तिजताते हुएकहा- मैं धन्य हूँ! आज आप मेरे हाथ काबना भोजन करेंगो राजा कुछ नहीं बोला। शांत भावसेआकरआसन पर बैठगया। रानीपरोसतीगई राजापारणाकरने लगा। कुछ ही देर में राजा के शरीर में तेज जलन होने लगी। सिर चकराने लगा। जी मिचलाने लगा। चमड़ी पर फफोलेसेहोनेलगा ओह! लगता है (इस भोजन में रानी जे विष मिला दिया। For Private Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण वह चुपचाप उठकर पौषधशाला में आ गया। स्थिर होकर लेट गयाकिसी पर क्रोध करना व्यर्थ है। अपने किये पापकर्म ही दुःख देते हैं। मेरे अशुभ कर्मों के कारण ही रानी की ऐसी दुर्मति हुई होगी। वह तो निमित्त मात्र है। अशुभ कर्मों का कर्त्ता तो मैं ही हूँ । | इस प्रकार अत्यन्त समताभाव के साथ राजा ने उस भयंकर पीड़ा को सहन किया। विष-से शरीर जल रहा था, | परन्तु मन में जैसे अमृत बरस रहा था। राजा को गुरु केशीकुमार का अमर वाक्य स्मरण हो रहा था xxxxx शरीर नाशवान है, आत्मा अमर है, विषमता विष है, समता अमृत है। m h гал कुछ समय बाद राजा के प्राण निकल गये। 28 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण उसका जीव प्रथम स्वर्ग में जाकर सूर्य केसमान तेजस्वी, प्रभावशालीसभि देव बना। COULODE भगवान महावीर ने गौतम को सूभि देव के पूर्व जिज्ञासुगौतम ने फिर प्रश्न कियाजीवन की कथा सुनाकरकहा-हेगौतम ! इस प्रकार राजा प्रदेशी अपने भगवन् ! सूर्याभ देव पूर्व जन्म में किये सुकृत्यों की आयुष्य कितनी है ? के फलस्वरूप ऋद्धि और देवलोक के पश्चात् सम्पन्न देव बना है। वह कहाँ उत्पन्न होगा? 29 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौतम! इसकी आयुष्य चार पल्योपम" की है। देवलोक से च्यवन करके वह महाविदेह क्षेत्र में | एक सम्पन्न कुल में उत्पन्न होगा। इसका नाम दृढ़प्रतिज्ञ होगा। QQ 166600X4 दृढ़प्रतिज्ञ दीक्षा लेकर अणगार धर्म का पालन करते हुये केवल ज्ञान को प्राप्त करेंगे। 5 30 | अपने समस्त कर्मों का क्षय करके | वहाँ से मोक्ष प्राप्त करेंगे। / Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर के श्रीमुख से प्रदेशी राजा के भूतकाल और भविष्य के जीवन प्रसंगों को सुनने के पश्चात् गौतमस्वामी केहृदय में उल्लास उत्पन्न हुआ और उन्होंने भगवान की वन्दना करकेकहा CO भन्ते! जैसा आप फरमाते हैं, वह वैसा ही है। AMOM भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार करकेगौतम ध्यान, चिन्तन में लीन हो गये। समाप्त कथाबोध प्रदेशीराजा का चरित्रहमें अनेक शिक्षाएँ देता है. जिसे अपनी आत्मा पर श्रद्धा और विश्वास नहीं है, उसमें दया, करुणा, प्रेम, सेवा, सहनशीलता आदि सगुण नहीं आ सकते। इसलिए सबसे पहले अपने आप पर, अपनी सत्ता पर विश्वास करो। यह समझो हमारा शरीर तो नाशवान है, इसमें रहा आत्मा अमर है। शरीर की सुख-सुविधा और भोगों के लिए आत्मा को पतित और मलिन नहीं करना चाहिए। . प्राणी जैसा कर्म करता है, उसका फल भी उसे भोगना ही पड़ता है। इसलिए कभी दुष्कर्म, अत्याचार और अनीति का मार्ग मतपकड़ो। . साधारण मनुष्य अज्ञान और वासनाओं से मूढ़ है। जब सच्चे ज्ञानी गुरु मिलते हैं तब सबोध देकर उसे कल्याण का मार्ग बताते हैं। गुरु के बिना ज्ञान नहीं।। आत्मा को देखने वाले की दृष्टि में समूचा संसारही उसका मित्र है। अहित करने वाला, अपराधी पर भी उसे क्रोध नहीं आता। वह सबको क्षमा करता है। सदा समता भाव में रहता है। इसलिए शरीर की पीड़ा भी उसे विचलित नहीं कर सकती। जीवन में धर्म भावना आते ही सबसद्गुण अपने आप आ जाते हैं। प्रदेशी जैसा क्रूर अत्याचारी निर्दयीराजाभी धर्म के प्रभाव से, सत्संग के फलस्वरूपऐसा महान त्यागी, क्षमाशील और सहनशील बन गया कि जहर देने वाली पत्नी पर उसने क्रोध नहीं किया। सबको क्षमा ! सबको प्रेम ! यही है धर्म की पहचान्। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हंसो मत ! समझो.. राज प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण अक्ल बड़ी या भैंस ? भैंस बड़ी है अक्ल से भैंस खिलाती माल । अक्ल खिलाती चनपटे, करती बुरे हवाल ।। अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा- -"अकल बड़ी है या भैंस ?" "भैंस ।” "कैसे?" लड़के ने कहा- "भैंस तो हमें दूध पिलाती है, दही खिलाती है और मक्खन खिलाती है और अक्ल केवल चनपटे खिलाती है । " आश्चर्य से अध्यापक ने कहा- "यह कैसे ?" "ऐसे सर ! पिताजी की किसी बात का जवाब मैं देता हूँ, तब वे दो थप्पड़ मार देते हैं और कहते हैं-'आजकल तुझ में अक्ल ज्यादा आ गई है।' यही आप करते हैं और यही मेरी माँ । तब आप ही सोचिये अक्ल बड़ी है या भैंस । " भोले (मूर्ख) छात्र का समाधान सुनकर अध्यापक मुस्करा कर चुप हो गए। त्यागी : महात्यागी तुच्छ त्याग मैंने किया, छोड़ा तब निस्सार । नाशवान धन हेतु यह, छोड़ रहा है सार ।। किसी नगर एक बहुत पहुँचे हुए त्यागी महात्मा आए । नगर की जनता ने सत्संग का लाभ लिया। पर एक सेठ जो अच्छा धनाढ्य था, वह कभी नहीं आया। योगी ने जब उसके न आने का कारण पूछा, तब किसी ने बताया कि वह तो अपने धन के नशे में बावला हो रहा है। फिर भी एक दिन ऐसा प्रसंग आया कि सेठ योगी की सत्संग-सभा में चला ही आया। ज्यों ही सेठजी ने आकर मुनि को नमस्कार किया, त्यों ही मुनिजी भी खड़े हो गये और सेठ को नमस्कार किया ! दर्शक सब आश्चर्य में थे। ऐसा करने का कारण पूछा, तब योगी बोले "यह महात्यागी है, क्योंकि मैंने तो नाशवान धन और परिवार को ही छोड़ा है और इस सेठ ने तो नाशवान धन के पीछे अविनश्वर आत्म-सुखों को ही छोड़ रखा है। इसलिए ये बड़े त्यागी हैं। तभी मैंने इन्हें नमस्कार किया है।" तपस्वी के व्यंग्य - वाक्यों ने सेठ की आँखें खोल दी। वह योगी के चरणों में गिर पड़ा। 32 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक बात आपसे भी......... सम्माननीय बन्धु,.. सादर जय जिनेन्द्र ! जैन साहित्य में संसार की श्रेष्ठ कहानियों का अक्षय भण्डार भरा है। नीति, उपदेश, वैराग्य, बुद्धिचातुर्य, वीरता, साहस, मैत्री, सरलता, क्षमाशीलता आदि विषयों पर लिखी गई हजारों सुन्दर, शिक्षाप्रद, रोचक कहानियों में से चुन-चुनकर सरल भाषा-शैली में भावपूर्ण रंगीन चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करने का एक छोटा-सा प्रयास हमने गत चार वर्षों से प्रारम्भ किया है। ___अब यह चित्रकथा अपने छटवें वर्ष में पदापर्ण करने जा रही है। इन चित्रकथाओं के माध्यम से आपका मनोरंजन तो होगा ही, साथ ही जैन इतिहास संस्कृति, धर्म, दर्शन और जैन जीवन मूल्यों से भी आपका सीधा सम्पर्क होगा। ... - हमें विश्वास है कि इस तरह की चित्रकथायें आप निरन्तर प्राप्त करना चाहेंगे। अतः आप इस पत्र के साथ छपे सदस्यता पत्र पर अपना पूरा नाम, पता साफ-साफ लिखकर भेज दें। आप इसके तीन वर्षीय (33 पुस्तकें), पाँच वर्षीय (55 पुस्तकें) व दस वर्षीय (108 पुस्तकें) सदस्य बन सकते हैं। आप पीछे छपा फार्म भरकर भेज दें। फार्म व ड्राफ्ट/एम. ओ. प्राप्त होते ही हम आपको रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा अब तक छपे अंक तुरन्त भेज देंगे तथा शेष अंक (आपकी सदस्यता के अनुसार) जैसे-जैसे प्रकाशित होते जायेंगे, डाक द्वारा हम आपको भेजते रहेंगे। धन्यवाद ! ॐ आपका नोट-वार्षिक सदस्यता फार्म पीछे है। संजय सुराना प्रबन्ध सम्पादक SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE, OPP. ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282 002. PH.: 0562-2151165 हमारे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त सचित्र भावपूर्ण प्रकाशन पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य पुस्तक का नाम मूल्य सचित्र भक्तामर स्तोत्र 325.00 सचित्र ज्ञातासूत्र (भाग-1,2) 1,000.00 भक्तामर स्तोत्र (जेबी गुटका) 20.00 सचित्र णमोकार महामंत्र 125.00 सचित्र दशवैकालिक सूत्र 500.00 सचित्र मंगल माला 20.00 सचित्र तीर्थंकर चरित्र 200.00 सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र 500.00 सचित्र भावना आनुपूर्वी 21.00 सचित्र कल्पसूत्र 500.00 सचित्र अन्तकृद्दशा सूत्र 500.00 सचित्र पार्श्वकल्याण कल्पतरू 30.00 चित्रपट एवं यंत्र चित्र सर्वसिद्धिदायक णमोकार मंत्र चित्र 25.00 श्री गौतम शलाका यंत्र चित्र 15.00 भक्तामर स्तोत्र यंत्र चित्र 25.00 श्री सर्वतोभद्र तिजय पहुत्त यंत्र चित्र 10.00 श्री वर्द्धमान शलाका यंत्र चित्र 15.00 श्री घंटाकरण यंत्र चित्र 25.00 श्री सिद्धिचक्र यंत्र चित्र 20.00 श्री ऋषिमण्डल यंत्र चित्र 20.00 Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वार्षिक सदस्यता फार्म मान्यवर, मैं आपके द्वारा प्रकाशित चित्रकथा का सदस्य बनना चाहता हूँ। कृपया मुझे निम्नलिखित वर्षों के लिए सदस्यता प्रदान करें। 000 我 तीन वर्ष के लिये पाँच वर्ष के लिये दस वर्ष के लिये नाम (Name) (in capital letters). पता (Address). M.O./D.D. No. अंक 34 से 66 तक (33 पुस्तकें) अंक 12 से 66 तक (55 पुस्तकें) अंक 1 से 108 तक (108 पुस्तकें) (कृपया बॉक्स पर [7] का निशान लगायें) शुल्क की राशि एम. ओ. / ड्राफ्ट द्वारा भेज रहा हूँ। मुझे नियमित चित्रकथा भेजने का कष्ट करें। 1. क्षमादान 2. भगवान ऋषभदेव 3. णमोकार मन्त्र के चमत्कार 4. चिन्तामणि पार्श्वनाथ नोट- • यदि आपको अंक 1 से चित्रकथायें मंगानी हो तो कृपया इस लाईन के सामने हस्ताक्षर करें 5. भगवान महावीर की बोध कथायें 6. बुद्धि निधान अभय कुमार 7. शान्ति अवतार शान्तिनाथ 8. किस्मत का धनी धन्ना Bank. 14. मेघकुमार की आत्मकथा 15. युवायोगी जम्बूकुमार सदस्यता शुल्क 540/ 900/ 1,800/ 9-10 करुणा निधान भ. महावीर (भाग- 1, 2) 11. राजकुमारी चन्दनबाला 12. सती मदनरेखा 13. सिद्ध चक्र का चमत्कार . पिन (Pin). हस्ताक्षर (Sign.). • कृपया चैक के साथ 25/- रुपये अधिक जोड़कर भेजें। • पिन कोड अवश्य लिखें। • तीन तथा पाँच वर्षीय सदस्य को उनकी सदस्यतानुसार प्रकाशित अंक एकसाथ भेजे जायेंगे । चैक / ड्राफ्ट / एम.ओ. निम्न पते पर भेजें- SHREE DIWAKAR PRAKASHAN A-7, AWAGARH HOUSE. OPP ANJNA CINEMA, M. G. ROAD, AGRA-282002. PH. : 0562-2151165 दिवाकर चित्रकथा की प्रमुख कड़ियाँ 16. राजकुमार श्रेणिक 17. भगवान मल्लीनाथ 18. महासती अंजना सुन्दरी 19. करनी का फल (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती) 20. भगवान नेमिनाथ खर्च 100 150 400 Amount 21. भाग्य का खेल 22. करकण्डू जाग गया (प्रत्येक बुद्ध) 23. जगत् गुरु हीरविजय सूरी 24. वचन का तीर 25. अजात शत्रु कूणिक 26. पिंजरे का पंछी 27. धरती पर स्वर्ग 28. नन्द मणिकार (अन्त मति सो गति) 29. कर भला हो भला कुल राशि 640 1,50 2,200 30. तृष्णा का जाल 31. पाँच रत्न 32. अमृत पुरुष गौतम 33. आर्य सुधर्मा 34. पुणिया श्रावक 35. छोटी-सी बात 36. भरत चक्रवर्ती 37. सद्दाल पुत्र 38. रूप का गर्व 39. उदयन और वासवदत्ता 40. कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य 41. कुमारपाल और हेमचन्द्राचार्य 42. दादा गुरुदेव जिनकुशल सूरी 43. श्रीमद् राजचन्द्र Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हरहस्य क संगीतकार के संगीत-कक्ष में दीवार पर एक ढोलक टॅग रहा था और खिड़की में बाँसुरी रखी हुई थी। संगीतकार के पुत्र ने उस कक्ष में प्रवेश किया। उसने - बाँसुरी उठायी। अधरों पर रखकर उसे बजाने लगा। बाँसुरी बजाने के पश्चात् बालक ने उसे यथास्थान पर रखकर ढोलक पर एक थाप लगायी। कमरा ढोलक के शब्द से गूंज उठा। बालक संगीत-कक्ष से बाहर चला गया। दुःखी होते हुए ढोलक ने बाँसुरी ने कहा-"बहन, मेरा कैसा दुर्भाग्य है कि जो भी आता है वह मुझे मारता है और तुम्हें प्यार से अपने अधरों पर लगाता है। मेरा जीवन मार खाते-खाते ही बीत रहा है।" बाँसुरी ने धीरे से कहा-"ढोलक भैया ! बुरा मानने की आवश्यकता नहीं है। वस्तुतः हम दोनों एक समान हैं। तुम्हारे अन्दर भी पोल है और मेरे अन्दर भी। मैंने अपनी पोल को सात-सात छिद्रों के द्वारा जनता के सामने रख दिया है, किन्तु तुमने अपनी पोल को मृत-चर्म से ढकने का प्रयास किया है, जिसके कारण लोग तुम्हें पीटते हैं।" ढोलक बाँसुरी की बात सुनकर अन्तर्दर्शन करने लगा। 00 * जैसे को तैसा **** रोधी दल का एक सदस्य एक मन्त्री महोदय से मिलने के लिए पहुंचा। मन्त्री महोदय के सचिव ने जरा मुँह को मटकाते हुए कहा-"मुझे अपार खेद है कि मन्त्री महोदय से आपकी भेंट नहीं हो सकेगी, क्योंकि उनकी पीठ में अत्यधिक दर्द है।" सदस्य ने मुस्कराते हुए कहा-"तुम उन्हें यह समाचार दो कि मैं कुश्ती लड़ने नहीं, उनसे वार्तालाप करने आया हूँ। वे भले ही लेटे रहें वार्तालाप तो ही हो जायेगा।" सचिव के पास उसका कुछ भी उत्तर नहीं था। 10 Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सचित्र आगम प्राकृत मूल एवं हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद के साथ जैन संस्कृति का मूल आधार है आगम। आगमों के कठिन विषय को सुरम्य रंगीन चित्रों के द्वारा मनोरंजक और सुबोध शैली में मूल प्राकृत पाठ, सरल हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत करने का ऐतिहासिक प्रयत्नाअबतकप्रकाशितआगमन सचित्र उत्तराध्ययन सूत्र मूल्य 500.00 सचित्र दशवैकालिक सूत्र मूल्य 500.00 (भगवान महावीर की अन्तिम वाणी अत्यन्त शिक्षाप्रद, जैन श्रमण की सरल आचार संहिताःजीवन में ज्ञानवर्द्धक जीवन सन्देश।) पद-पद पर काम आने वाले विवेकयुक्त संयत सचित्र अन्तकृद्दशासूत्र मूल्य 500.00 व्यवहार, भोजन, भाषा, विनय आदि की मार्गदर्शक अष्टम अंग। 90 मोक्षगामी आत्माओं का तप-साधना सूचनाए। पूर्ण रोचक जीवन वृत्तान्त। सचित्र नन्दी सूत्र मूल्य 500.00 सचित्र ज्ञाता धर्मकथांगसूत्र (भाग 1,2) ज्ञान के विविध स्वरूपों का अनेक युक्ति एवं दृष्टान्तों के प्रत्येक भाग का मूल्य. 500.00 साथ रोचक वर्णन। चित्रों द्वारा ज्ञान के सूक्ष्म स्वरूपों को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया गया है। भगवान महावीर द्वारा कथित बोधप्रद दृष्टान्त एवं रूपकों आदि को सुरम्य चित्रों द्वारा सरल सुबोध शैली में प्रस्तुत किया गया है। सचित्र आचारांग सूत्र (भाग 1, 2) सचित्र कल्पसूत्र मूल्य 500.00 प्रत्येक भाग का मूल्य 500.00 पर्यषण पर्व में पठनीय 24 तीर्थंकरों का जीवन-चरित्र व आचारांग सूत्र भगवान महावीर के दर्शन का आधारभूत स्थविरावली आदि का वर्णन। रंगीन चित्रमय। प्रथम अंग सूत्र है। सचित्र उपासकदशा एवं अनुत्तरौपपातिक दशा सूत्र अनुयोगद्वार सूत्र (भाग 1,2) . . मूल्य 500.00 प्रत्येक भाग का मूल्य 500.00 10 श्रावकों तथा 33 श्रमणों की तपः साधना का वर्णन। आगम ज्ञान रूपी नगर का प्रवेश द्वार या आगमों की विवेचन शैली समझने की कुंजी है यह शास्त्र। यह सचित्र रायपसेणिय सूत्र मूल्य 500.00 आगम विशाल है और इसको समझने के लिए व्याख्या राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण के बीच हुई आदि का सहारा लेना भी जरूरी है। इसी कारण आध्यात्मिक चर्चा। इसको दो भागों में प्रकाशित किया गया है। सचित्र निरयावलिका एवं विपाक सूत्र मूल्य 600.00 सचित्र औपपातिक सूत्र मूल्य 600.00 निरयावलिका में तीन तीर्थंकरों के युग की घटनायें तथा इस सूत्र में कौणिक राजा द्वारा भगवान महावीर की विपाक सूत्र में पाप-पुण्य के फल विपाक का रोमांचक वर्णन है। दर्शन यात्रा तथा अनेक परिव्राजकों की चर्चा है। सम्पूर्ण सैट का मूल्य 7700/ गिसूत्र सचित्र दशवकालिक सूत्र CHARAN निरयावलिका विपाक सूत्र औषपातिक सूत्र AUPAPATIK SUTE कल्पसूत्र उत्तराध्ययन अनुयोगनारसूत्र ज्ञाताधर्मकथाइस D NAVAVALIKA ANTRA wasta Darna King Site Anuyog-dvar Sutra VAAK SUTRA प्राप्ति स्थान : श्री दिवाकर प्रकाशन ए-7, अवागढ़ हाउस, अंजना सिनेमा के सामने, एम. जी. रोड, आगरा-282 002. . फोन : (0562) 2151165,2525020