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वत्स! ऐसे बेकार राजा को
खत्म कर तुम्हें राजभार संभाल लेना चाहिए न ?
एक दिन दासी ने कहा
रानी जी! कल महाराज को षष्ट तप (बेले) का पारणा है। क्या तैयारी करूँ ?
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राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण
ना ! ना ! मात् ! ऐसी बात मुँह से कहना भी मता मैं तो कानों से सुनना भी पसन्द नहीं करता। क्या मैं पितृघात का महापाप कर डालूँ ना ना !
और वह उठकर चला गया।।
यह अच्छा मौका है। मैं आज अपनी योजना पर अमल करूँगी।
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रानी ने सोचा
फिर दासी से बोली
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यह तो बात बिगड़ गई। मेरे षड्यंत्र की भनक राजा को लग गई तो मुझे कुत्ते की मौत मार डालेगा।
और वह दिन-रात राजा को मारने की ताक में रहने लगी।
तुम क्या करोगी ! मैं खुद महाराज को अपने हाथों से पारणा कराऊँगी। पति सेवा तो पत्नी का धर्म जो है।
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