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________________ राजा प्रदेशी और केशीकुमार श्रमण और राजा एकान्त में अपनी पौषधशाला में जाकर रहने एक दिन उसकी रानी सूर्यकान्ता ने विचार कियालगा। उपवास आदि तपकरता। ध्यान करता और परमात्म मेरे पति तो धर्म कर्म में भक्ति में लीन रहता। जाहीर डूबकर मुझे ही भूल गये। Maa अब न तो मुझसे बात करते हैं, न ही कभी महल में आते हैं। मुझसे तो जैसे नाता ही तोड़ लिया है। रातभर विचार करते-करते उसने । योजना बनाई क्यों न राजा को मारकर अपने पुत्र को राजा बना दूं और मैं राजमाता बनकर सम्मानपूर्वक सुख भोगें। प्रातःकाल एकान्त में पुत्र से मिली वत्स्! तुम्हारे पिताजी ने तो राजधर्म से मुँह मोड़ लिया है। उन्हें न परिवार से प्रेम रहा, न ही प्रजा से। हाँ माता! उनका तो जीवन ही बदल गया है। 24 25 For Rrivate & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002855
Book TitleRaja Pradeshi aur Keshikumar Diwakar Chitrakatha 056
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Surana
PublisherDiwakar Prakashan
Publication Year
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Story
File Size21 MB
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